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________________ २.६] संक्षिन इनाम । पुहिनोनिने सहमम'-याका अनुसरण किया बा-उसने भी बने पसिके बाब मानी ऐहिकीका समा कर दी थी। इसपर मालिके बक प्रमुमोंने इसरान-मतिको जिनधर्म-मक्तिको चिरस्थायी बना के लिय निधिका बनाई मी! शासनाधिकारी महापम् पेगौड़की पतीनी अमिगोन्टिनं मी सन् १९९५ में समाधिमरण किया था। यह सबगुरु मिद्धांतिपतिकी शिष्या बीं। १३९८ में महाप दगोर शासन कर रहे थे। उनकी रानी बन्दगौन्दि भाचार्य विषकीतिकी शिष्या की। धर्म-कर्म करने में वह सचेत रहती थी महोन भी अपनी ऐहिक जीवनलीग सन्यासमरण द्वारा समाप्त की बी। नापलि-शासक महामु रामगोड़के पुत्र हाल्वगौड़ मुनि भद्रदेषके शिष्य थे। सन् १९०८ ई० में होने भी अपने गुस्से मल्लेखना किया था। सन् १९१७६० में जन महाप्रभु भयगौड़ शासन कर रहे थे, तब उनकी पनि कालगोन्डिने भी समाविमान किया बान लेखोंसे पाठक समझ सकते है कि उससमय नावलिनॉस्में बेन धर्म किस पहारिक रूपमें उन्नत हो रहा था। पटाके शासक और जैन धर्म । इसी प्रकार छप्पदाके शासक भी जिनेन्द्र भक्त थे। पाकि ट्रम्य बामणोंका गायब, किन्तु बाम पाकर नर्मदा बोली हावा ही कामांशकी शनी माग्देवीको कमी प्रमाहिती बी, सन् १०. में पास निशि नामदायोंने सकार
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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