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संक्षिप्त जैन इतिहास |
दिग्विजय के लिये
जब भगवान नेमि कवकज्ञानी हुये, तब करने आये | के साथ अनेक यादवगणने शिव्यन्त्र ग्रहण किया था । उपरान्त श्री कृष्णने प्रस्थान किया। और अनेक पौक्षणभाग्न क्षेत्रको विजय किया । इसके पश्चात कृष्णने खूब भोग भोगे और अन्य राजाओं वश किया। उागन्न उन्होंने 'कोटिशिला ' स्ट नेके लिये गमन किया और उसे उठाकर अपने शारीरिक बनका परिचय जगनको करा दिया। यहां वह द्वारिका माये और वहां उनका राज्याभिषेक हुआ। अब कृष्ण गजराजेश्वर बनकर नीतिपूर्वक राज्य करते रहे ।'
वह उनकी वन्दना कर अरिष्टनेमिका
उधर हरितनापुर पांव सानंद रह रहे थे कि उसका विरोध कौम हुआ। शांतिप्रिय
थे। उन्होंने इस
को मेंटनेका
पञ्च पाण्डव ।
उद्योग किया।
यह गृहामि शांत
न हुई । कौरवोंन दुष्टताको ग्रहण किया। उन्होंने पडकी लाखा गाने जला डालने का उद्योग किया, परन्तु वे सुरंग के रास्ते भाग निकले । हस्तिनापुर से चलकर पांचों पाडन और कुन्ती दक्षिण भारतमें पहुंचे। वर्षो उधर ही विचरते रहे और उस ओके राजाओसे उन्होंने विवाह सम्बन्ध किये ।
१- हरि० सर्ग ५३, कोशिटा दक्षिण भारत में हो कहीं मवस्थित थी । श्रीमान् ब्र० सीताजी ने इसे कलिगदेश में नहीं चन्ह है।