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७६ ] संक्षिप्त जैन इतिहास । देना निश्चित किया । अरिष्टनेमि दहा बने-ब.रातके बाजा बजे
और बजा निशान उड़े । परन्तु अरिष्टनेमिका विवाह नहीं हुआ। उन्होंने किन्हीं पशुओंको भृम्बप्याससे छटपटाने हुये बाड़में बन्द देम्वा । इस वरुण दृश्यने उनके हृदयको गहरी चोट पहुंचाई । उनका कोमल हृदय इन अदयाको सहन न कर सका । पशुओंको उन्होंन बन्धन मुक्त कियाः पान्तु इनने मे ही उन्हें सन्तोष नहीं हुआ। ___ उन्होंने मांचा संसारके सब ही प्राणी प्रान मोर यमदुतके चुंगलमें फंसे हुये शबन्धनमें पड़े हुये हैं-वह स्वयं भी तो स्वाधीन नहीं है ! क्यों न पूर्ण स्वाधीन बन जाय ? यही सोचसमझकर मरिष्टनेमिने वस्त्राभूषणाको उतार फेंका । पालक मे उतर कर वह मांध वितक ( गिरनार ) पर्वतकी और नर दिये। वहां उन्होंने श्रावण शुक्ल षष्टीको दिगम्बा मुद्रा धारण कर तपस्या करना आपकी घोर तपश्चरणका सुफल केवलज्ञान उन्हें नमीत्र हुमा । गरिनार पर्वतक पाम महलाम्रबनमें ध्यान माइकर उन्होंने पातिया को हा नाश पश्चिन कृष्णा अमावस्या शुभ दिन किया।
भब मरिष्टनेमि मासान मर्वज्ञ नीयका होगये। देव और मनुष्योंने उन्हें मम्नक नमाया और उनका धर्मादेश चाबमे मुना। सना वार मा प्रमुख भिस्य हुआ । कुमारी नुल भी साध्वी देकर आर्यिकाओंने अपनी हुई।
१-हरि०, पृष्ठ ४१३-५०५॥