SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [७ प्राथकन। मुख्यतया मसुर नामसे ही विख्यात थे। अब जरी देखिये, वैदिक साहित्यमें इन मसुर लोगोंकी यह खास विशेषतायें वर्णित हैं: (१) मसुर लोग 'प्रजापति ' की सन्तान थे और उनकी तुलना वेदिक देवताओं के समान थी। (२) असुर लोगोंकी भाषा संस्कृत नहीं थी। पाणिनिने उन्हें व्याकरणके ज्ञानसे हीन बताया है। ऋग्वेद (७।१८-१३) में उन्हें 'विरोधी भाषा-भाषी' (of hostile speech) और वैदिक मार्योका शत्रु ( १।१७४-२) कहा है। (३) मसुर ध्वनचिह्न सर्प और गरुड़ थे । (४) मसुर क्षात्रधर्म प्रधान थे। (५) असुर लोग ज्योतिष विद्यामे निष्णात थे। (ऋग्वेद १।२८८) (६) माया या जादृ ( magic) मसुरका गुण था। (ऋग्वेद १।१६०-२३) । असुर लोगोंकी यह विशेषतायें भाज भी जैनियोंके लिये भनूठी हैं । जैन शास्त्रोम आदिब्रह्मा ऋषभदेव 'प्रजापति' भी कहे गये हैं।' आजके जैनी उनकी सन्तान हैं और वे भी अन्य हिन्दु ओंकी तरह मार्य ही हैं । जैनियोंकी भाषा संस्कृतसे स्थानपर प्राकृत रही है जिसका व्याकरण अथवा साहित्यकरूप संस्कृतसे शायद भर्वाचीन है । प्राकृत संस्कृतसे मिन्न ही है। इसलिये जैनियों और अमरोंकी माषा भी सदृश प्रगट होती है। असुर चिह सर्प १. महापुराण-विसहस्त्रनाम -
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy