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बान्ध्र सामान्या [१२६ तामिक राजाओं के समबमें शिक्षाका खुप प्रबार था । सियां
भी आतंत्रतापूर्वक विषाध्ययन करती माहित्य। बी। उनमें कई मियां मच्छी कवियत्री
भी। विद्वत्ता भी केवल उच्च वर्णक लोगों तक सीमित न थी। हरकोई अपनी बुद्धि-कौशलका प्रदर्शन कर सकता था। उन कोटिक साहित्यका निर्माण ठीक हो और साहित्य प्रगतिको प्रोत्साहन मिले, इसलिये एक • संपम ' नामकी समा स्थापित थी। जिसमें उद्भट विद्वान् गौर राजा रचनामोंकी समालोचना कर उन प्रमाणता देने थे।
इस संघम्काल के जगमग पचास भनट तामिळ ग्रंथ भाजतः उपलब्ध है जो इतिहास लिये महत्वकी चीम है। जनाचार्य भी इस संघम्' में भाग लेने थे और नामिनका भारम्भिक साहित्य मधिकाश जैनाचार्योका ऋणी है । पाण्डय गजा 'पाण्डियन ठर्ग पैक वोटि ने इस मंघम ममा उलंबीय माग लिया था । उनी समक्ष नामिलका प्रसिद्ध काव्य 'कुल' संघममें उपित किया गया था और म्वीकृत हुमा था। उस समय ४८ महाकवि विद्यमान । 'कुरल' अनाचार्यकी रचना है, यह हम भागे प्रगट करेंगे। उस समय एक तामिल कवियित्री मनवैय्यार नामक थी। उसने राजाकी प्रशंसा एक मुंदर रचना रची थी।
तामिल राज्यमें वैदिकधर्म और बौद्धधर्म मतिरिक्त जैनधर्म
१-माइ• पृष्ट २८९-२९. जमीसो. मा• १८ पृष्ट २१५॥ २-मममामा• पृष्ट १.५।