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मान सामान जिस समय मधुराको मारहा था तो मार्गमें एक जैनीने उमें साबपान किया था कि वे वहां पहुंचकर किसी जीवको पीडा न पहुंचायें और न हिंसा करें, क्योंकि वहां निर्यन्य ( मैनी ) इसे पाप बताते हैं। पुहरनगरमें नब इन्द्रोत्सब हुआ तो राजाने सब ही सम्प्रदायोंको निमंत्रित किया । जेनी भी पहुंचे और अपना धर्मोपदेश दिया, जिसके फजाप अनेकानेक मनुष्य जैन धर्म दीक्षित हुऐ।
'गीरप्पधिकारमाध्यमे प्रगट है कि उमके मुख्य पात्र मधुगकी यात्रा करने गये थे। मधुमप ममय तीर्थ समझा जाता था। वहां पासमें अनेक जन गुफायें थीं, जिनमें जैन मुनि तपस्या किया करते थे। 'भागवना कथाकार में प्राट है कि म. महावीरके उपगन्त वहांपर एक मुगुमाचार्य नामके महान साधु हुये थे।' मदराकी यात्राको चलकर वे पात्र पहले जैन साधुमांको एक 'पलि' चे ठहरे थे। वहां चिकने मंगमामाका चवृतग था. नमपसे जेनाचार्य उपदेश दिया करते थे। उन्हान उसकी परिक्रमा दे बन्दना की। वहांसे चलकर उन कावेरी नदीक तटपा आर्यिकाओं का भाश्रम मिला । देवन्धि भायिका मुख्य थी, वह भी उनके साथ होली। जैन भायिकाओं का प्रभाव उस समय तामिक बीसमाजमे खुब था। मागे कावर्गके बीच टापूमें भी उन्होंने जैन साधुके दर्शन किये । सारांश यह कि उन ठौर-टोरपार जैन मुनियों और मार्यिकाकि दर्शन होते थे। इससे वहां जैनधर्मका बहु प्रचलित होना सष्ट है।
१- १-१८।२-वैसाई.8 २९।३-मा.।