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गान्ध्र-साम्राज्य। [१०९ है। अनेक राजा-महाराजा उसकी सेवा करते और माझा मानते थे। वह शरणागतोंकी रक्षा करता और प्रजाके सुख-दुःखको अपना मुख दुः ममझता था । वह विद्वान, सजनोंका भाभय, यक्षका भागार, चारित्रका भंडार, विधाने भद्वितीय और एका धनुपर वीर था।
उसने नक, यवन गौर पल्लयोंकी मंयुक्त मेनाको पगात करके भाग्नको महान मंष्टमे मुक्त किया था। इसी कारण वह 'विक्रमादित्य' नाममे प्रसिद्ध हुमा था। उसका गजत्वकाल पूर्व १०. ४४ वाया जाता है। प्रारम्ममें उमने बामणों के धर्मका पालन किया था, पान्तु भरने अनिम जीवन में यह एक जेन गृहम्य होगया थ' ! शवजयकी 'मृनिमें उसका एक मंगत भी भारम्म हुमा या जो भान तक पचलित है। गौतमीपुत्रके मतिरिक्त हम वंशके राजाओंमे बाल और
कुन्तलमतकणि भी उल्लेखनीय हैं। हाल व्यापार। अपनी साहि:यक रचनाक लिए सिद्ध
हैं भौः कुन्नलने मन ७८ ई० में पुनः शको अमाम्राज्यको म्वाधीन बनाया था। शालिवाहन शक इ. घटनाको निमें प्रचलित हुआ यः ।
मा बालमृद्धिशाली हुआ था। लोगोंमें उपाह और मान का हुआ था. निमम उन्होंन जीवन प्रत्येक
१-०, पृष्ठ १४९। २-विक्रमादित्य गौतमीपुत्र शातकणिका विवेचनात्मक वर्णन ' संक्षिप्त जन इतिहास ' माग २ खंर २ पृ०-६१-६६ में देखना चाहिए।