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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
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रचना और क्रम ठीक वैसा ही है जैसा कि करकेंटुकी बनवाई हुई गुफाओंका था । और aniपर जीमूतवाहन विद्याधर के वंशजोंका एक समय राज्य भी था | वे ' नगरपुरक अधीश्वर ' कहलाते थे । उपगन्त वे ही लोग इतिहास में शिलाहार वंशके नामसे परिचित हुये थे । करकण्डु महाराजकी सहायता करनेवाला भी एक विद्याधर धा और उसने यह कहा था कि नील महानील विद्याषकि वंशज तेगपुर ( तगरपुर ) में राज्य करने थे। इसमें है कि शिलाहावंश के राजा उन विद्य घक ही अधिकारी थे. जिनमें नधर्मकी मान्यता थी । शिलाहार राजाओ ने भी अधिकांश जैनी थे। इससे भी दक्षिण भारत में जैनधर्मका प्राचीन अस्तित्व सिद्ध है। x
भगवान् महावीर - वर्द्धमान् ।
भगवान महावीर जैन धर्म माने हुये चौबीस तीर्थङ्क में अन्तिम थे। वे ज्ञातृवंशी क्षत्रिय नृप सिद्धार्थ पुत्र न थे। उनका जन्म वैशालीक निकट व्यवस्थित कुण्ड प्राममें हुआ था और उनके जीवनका अधिकांश समय उत्तर भारत में ही व्यतीत हुआ था परन्तु यह बात नहीं है कि दक्षिण भारतके लोग उनके देश रहे थे । यह अवश्य है कि उनका बिहार टेठ दक्षिण में शायद नहीं हुआ हो। वहां उनके पूर्वगामी नीर्थङ्कर श्री अनमी आदि
★ विशेष लिये काण्डु बन्द' (कारंजा जन्माला । की भूमिका देखना चाहिये, जिसके वह परिचय सेचन्याद किखा गया है।