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२२२] संक्षिप्त जैन इतिहास । गणघर भी थे। उधर 'महावंश' नामक बौद्ध ग्रंथसे प्रगट ही है कि 'चन्द्रगुप्त हिमालय पर्वतके आसपासके एक देशका, जो पिप्पलिवनमें था और मोर पक्षियोंकी अधिकताके कारण मौर्य राज्य कहलाता था, एक क्षत्रिय राजकुमार था। हेमचन्द्राचार्यका मयूरपोषक ग्राम, दिगम्बर जैनों मौर्याख्य देश और चौद्धोके मोरिय (मौर्य) क्षत्रियों का पिप्पलिवनवाला प्रदेश एक ही प्रतीत होते हैं
और इस प्रकार यह स्पष्ट है कि चन्द्रगुप्त इस देशकी अपेक्षा ही मौर्य कहलाता था । ऐमा ही मैकक्रिन्डलका लेख है।
चन्द्रगुप्तका वाल्यजीवन मौर्याख्यदेशकी अपेक्षा अधिकतर बन्द वाय. मगधदेशमें व्यतीत हुआ था । तब मोरिय
जीवन (मौर्य) क्षत्रियोंकी राजधानी पिप्पलीवन थी। इन लोगोंमें भी उस समय गणराज्य प्रणालीके ढंगपर राज्य प्रबंध होता था। यही कारण प्रतीत होता है कि हेमचंद्राचार्य ने मयूर- ' पोषक देशके एक नेताका उल्लेख किया है। उनके उसे वहांका राजा नहीं लिखा है। किन्तु महापद्म नन्दने इन्हें भी अपने माधीन बना लिया था और एक मौर्य क्षत्री उनका सेनापति भी रहा था, यद्यपि मन्तमें उन्होंने उसे और उसकी सन्तानको मरवा डाला था। महापद्मके आधीन रहने हुये मौर्य क्षत्री सुखी नहीं रहे थे। चन्द्रगुप्तके भी प्राण सदैव संकटमें रहते थे, क्योंकि नंद रानाको उससे स्वभावतः भय होना अनिवार्य था; किंतु चंद्रगुप्तकी विधवा माताने उनकी रक्षा बड़ी तत्परतासे' की
-वृजेश पृ०७। २-महावंश-टीका सिंहलीयावृत्ति) पृ० ११९...। ३-माइ०. पृ०६९। ' सिमी भा० १ कि० ४ पृ. २१॥