________________
श्रुतकेवली भद्रवाहु और अन्य आचार्य। [२०३
० (११)
LA
श्रुताकेवली भगवाहुनी और
अन्य आचार्य
(ई० पू० ४७३-३८३) जम्बूस्वामी अंतिम केवली थे। इनके बाद केवलज्ञान-सूर्य श्री भदवाहजीको इस उपदेशमै मस्त होगया था; परन्तु पांच
समय। मुनिराज श्रुतज्ञानके पारगामी विद्यमान रहे थे। यह नंदि, नंदिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु नामकथे।' नंदिके स्थानपर दूसरा नाम विष्णु भी मिकता है। यह पांचों मुनिराज चौदह पूर्व और बारह अंगके ज्ञाता श्री जम्बूस्वामी के बाद सौ वर्षमें हुए बताये गये हैं और इस अपेक्षा अंतिम श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामी ई० पू० ३८३ अथवा ३६५ तक संघाधीश रहे प्रगट होते हैं। किन्तु भनेक शास्त्रों और शिलालेखोंसे यह भद्रबाहुस्वामी मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त के समकालीन प्रगट होते हैं
और चन्द्रगुप्तका समय ई० पृ. ३२६-३०२ माना जाता है। अब यदि श्री भद्रबाहुस्वामीका मस्तित्व ई० पू० ३८३ या ३६५ के बाद न माना जाय तो वह चन्द्रगुप्त मौर्यके समकालीन नहीं होसके हैं।
'उधर तिलोयपण्णति' जैसे प्राचीन ग्रन्थोंसे प्रमाणित है कि भगवान महावीरजीके निर्वाण कालसे २१५ वर्षे ( पालकवंश ६०
१-तिल्लोयपण्णति गा० ७२-७४ । २-श्रुतावतार कथा पृ० १३ व अंगपणति गा० ४३-४४। 3-सि मा०, भा० १ कि. १-४ १ श्रवण बे० पृ. १५-४०।४-जविमोस्रो० भा० १ पृ. ११६।