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________________ १७२] संक्षिप्त जैन इतिहास । मिलते कि वे सर्वलघु हैं । इससे यह ठीक जंचता है कि मायुमें भ० महावीरसे म० बुद्ध अवश्य बड़े थे; परन्तु एक मतप्रवर्तककी भांति वह सर्वरघु थे, क्योंकि अन्य सब मत म० बुद्धसे पहलेके थे ! इसप्रकार भ० महावीरका निर्वाण म. बुद्धके शरीरान्तसे दों वर्ष पहले मानना ठीक है और चूंकि चौद्धोंमें म० दुद्धका परिनिव्वान ई० पूर्व ६४३ वर्षमें माना जाता है, इसलिये भ० महावीरका निर्वाण ई० पूर्व ५४६में मानना मावश्यक और उचित है । जैसे पहिले भी यही अन्यथा प्रगट किया जाचुका है।। दिगम्बर जैनशास्त्रोंके कथनसे भी भ. महावीरकी जीवन दि. जैन शालोले घटनाओछा उक्त प्रकार होना प्रमाणित है। ___ उक्त मतका यह लिखा जाचुका है कि अणिक विम्वप्तारकी समर्थन होता है। मत्य भ० महावीरके जीवन में ही होगई थी और उनके बाद कुणिक अजातशत्रु विधर्मी होगया था, जिसे भ. महावीरके निर्वाणोपरान्त श्री इन्द्रमृति गौतमने जैनधर्मानुयायी बनाया था। इतिहाससे श्रेणिका मृत्युकाल ई० पू० ५१२ प्रकट है । तथापि सं० १८२७की रची हुई 'श्रेणिकचरित्र' की भाषा वचनिकामें है कि:" श्रेणिक नीति सम्भालकर, करे राज अविकार। वारह वर्ष जु वौद्धमत, रहा फर्मवश धार ॥५२॥ चारह वर्ष तने चित धरो, नन्दप्राम यह मारग करो। तह थी लेठि साथि चालियो, तब वेणक नगर आयियो ॥५३॥ नन्दनी परणी सुफुमाल, वर्ष दूसरे रह सुवाल । सात वर्ष ब्रमण धर रहे, पाछे आप राजसंग्रहे ॥५॥ १-मुस्तनिपात (S. B.E,X) पृ० ८७ व भमबु• पृ० ११०॥ बचनिकास नीति सम्भाला हा के
SR No.010473
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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