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संक्षिप्त जैन इतिहास |
शास्त्रोंसे भी प्रकट है । किन्तु इन दोनों मुनियोंके सम्बन्धमें कहा गया है कि वह बौद्ध होगये थे, सो ठीक नहीं है । यह जैन मान्यता के विरुद्ध है । सचमुच भगवान महावीरजीका प्रभाव म० बुद्ध और उनके शिप्योपर वेढब पड़ा था। यहांतक कि वह जैन मुनियोंकी देखादेखो अपनी प्रतिष्ठा के लिये नन भी रहने लगे थे; ' क्योंकि उस समय नन्नता ( दिगम्बर भेष ) श्री मान्यता विशेष थी।
वीरसंघका दूसरा अंग साध्वियों अथवा आर्यिकाओंका था । चन्दना आदि दिगम्बर जैन शास्त्रो में इनकी संख्या छत्तीसहजार आर्थिका । बसाई गई है । यह विदुषी महिलायें केवल एक सफेद साड़ीको ग्रहण किये गर्मी और जाडेको घोर परीषह सहन करती हुई अपना आत्मकल्याण करतीं थीं और लोगोको सन्मार्गपर लगाती थीं । वह भी मुनियोंके समान ही कठिन व्रत, संयम और आत्मसमाधिका अभ्यास करती थी। सांसारिक प्रलोभन उनके लिये तुच्छ थे । उनके ससर्गसे वे अलग रहती थीं । इन 1 मार्यिकाओंमें सर्वेप्रमुख राजा चेटककी पुत्री राजकुमारी चंदना थी; जिसका परिचय पहिले लिखा जाचुका है। चन्दनाकी मामी यशस्वती मार्यिका भी विशेष प्रख्यात् थी । चंदनाकी बहिन ज्येष्ठ ने इन्हींसे जिन दीक्षा ग्रहण की थी । इन मार्यिकाओका त्यागमई जीवन पूर्ण पवित्रताका आदर्श था। वे बड़ी ज्ञानवान और शास्त्रोंकी
१ - इसे जे० पृ० ३६ । २-३० भा० ९ पृ० १६२ । ३-मम० पृ० १२० व हरि० पृ० ५७९ में २४००० बताई है । उपु० पृ० ६१६ में ३६००० है ।