________________
५० ]
संक्षिप्त जैन इतिहास |
I
था, इसलिये बड़ा वैभवशाली थे । जैनशास्त्रों में इसकी शोभाका अपूर्व वर्णन मिलता है । फिर जिस समय भगवान महावीर का जन्म होने को हुआ था, उम समय तो, वह कहते हैं, कि स्वयं कुबेरने आकर इम नगरका ऐमा दिव्यरूप बना दिया था कि उसे देखकर मलकापुरी भी लज्जित होती थी । भगवान के जन्म पर्यंत वहां स्वर्मा और रत्नों की वर्षा हुई बतलाई गई है । राजा सिद्धार्थका राजमहल सात मजिलका था और उसे 'सुनंदावत्त' प्रासाद कहते थे । स्वर्गलोकके पुष्पोत्तर विमानसे चयकर वहां देवका जीव भगवान महावीर- आषाढ़ शुक्ला पष्ठी के उत्तराफाल्गुणी नक्षत्र में का जन्म और रानी त्रिशकाके गर्भ में आया था । उस समय वाल्पजीवन । उनको १६ शुभ स्वप्न दृष्टि पड़े थे* और देवने पाकर मानन्द उत्सव मनाया था। जैन शास्त्रोके अनुमार प्रत्येक तीर्थंकरके गर्म, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष अवमरपर देव
·
गण आकर आनन्दोत्सव मनाते हैं । यह उत्सव भगवान के 'पच
५
' कल्याणक' उत्सव कहलाते है | योग्य समयपर चैत्र शुद्ध त्रयोदशीको, जब चन्द्रमा उत्तराफल्गुणी पर था, रानी त्रिशलादेवीने जिनेन्द्र भगवान महावीरका प्रसव किया था । उस समय समस्त लोक में
कालके लिये एक आनन्द लहर दौड़ गई थी । भगवानका लालन-पालन बड़े लाड़-प्यार और होशियारीसे होता था । गैशवालसे ही वे बडे पराक्रमी थे ।
१- हि० पृ० १०७ । २- उ० पु० पृ० ६०५ । पृ० ६०४ * वेताम्बर में १४ स्वप्न बनाए हैं । ४-उ० पु० पृ० ६०५ वJs L206.
३- उ० पु०