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८] संक्षिप्त न इतिहास। योंको भारतवर्षकी सीमाओंमे बाहर निकाल दिया था और यूनानियोंसे अफगानिस्तान वर्ती परियाना प्रदेश भी ले लिया था। यूनानी राना सेल्यूकसने विनम्र हो अपनी कन्या भी चन्द्रगुप्तशे भेंटकर दी थी। इस प्रकार जबतक तत्त्वज्ञानकी लहर विवेक भावये भारत. वसुंधरा पर बहती रही, तबतक दम देशकी कुछ भी हानि नहीं हुई, किन्तु ज्योंही तत्त्वनानका स्थान साम्प्रदायिक मोह और विद्वे. पको मिलगया, त्योंही इस देशका सर्वनाश होना प्रारंभ होगया । हूण अथवा शकलोगोंकि भाक्रमण, जो उपरान्त भारतपर हुये: उनमें उन विदेशियोंको सफलता परस्परमें फैले हुये इस साम्प्रदायिक विद्वेषके कारण ही मिली। और फिर पिरले जमाने में मुमलमान, माक्रमणकारी राजपूतोंपर पारस्परिक एकता और सगठनके अभावमें विनयी हुये । वान् कोई नहीं कह सक्ता है कि राजपूतोंमें वीरता नहीं थी। अतएव माध्यात्मिक तत्व बहुपचार होनेसे इस देशकी हानि हुई ख्याल करना निरीह भूल है।
आजसे करीब ढाईहनार वर्ष पहिले भी भारतकी आकृति प्राचीन भारतका और विस्तार प्रायः मानकलके समान था।
स्वरूप । सौभाग्यसे उससमय सिकन्दर महान के साथ आये हुये यूनानी लेखकोंकी साक्षीसे उस समयके भारतका माकारविस्तार विदित होजाता है। मेगास्थनीज कहता है कि उस समयका भारत समचतुराकार (Quadrilateral) था। पूर्वीय और दक्षिणीय सीमायें समुद्रसे वेष्टित थीं; किन्तु उत्तरीयभाग हिमालय पर्वत (Mount Homodos) द्वारा शाक्यदेश (Skythia) से प्रथक कर दिया गया था। पश्चिममें भारतकी सीमाको सिंधुनदी