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अन्य राजा और जन संघ। [७५.
श्री देवसेनाचार्यजीके " दर्शनसार" नामक । दि० मतानुसार श्वे० ग्रन्थके अनुसार विक्रम संवत् १३६ में संप्रदायकी उत्पत्ति। श्वेतांबर संप्रदायको उत्पत्ति हुई प्रमाणित
है।' मोरठ देशकी वल्लभी नगरीमें यह संप्रदाय उत्पन्न हुआ था। किन्तु भट्टारक रत्ननंदिके 'भद्रबाहु चरित्र' एवं श्रवणबेलगोलके शिलालेखो तथा खेतांबरोंकी मान्यताओंसे प्रगट है. जैसे कि हम देख चुके हे कि जैनसंघमे भद्रबाहुजी श्रुतकेवलीके समय ही भेद पड़ गये थे। बौद्ध ग्रंथोंसे भी जैनसंघका भगवान् महावीरके उपरांत विभक्त होना सिद्ध है। ये बौद्ध ग्रंथ सम्राट अगोकके समय संशोधित और निर्णित हुये थे। अतएव सम्राट चंद्रगुप्तके समयमें जैन संघमें भेद पड़ा देखकर उन्होंने उक्त प्रकार उल्लेख किया है । इस दशामे देवसेनाचार्यका सं० १३६ ( सन् ८०-८१ ) मे श्वेतांबरोंकी उत्पत्ति होना बताना कुछ उचित नहीं जंचती. किन्तु उनका यह कथन तथ्यपूर्ण है।
श्वेतांवर भी दिगम्बर संप्रदायकी ओरसे उपस्थितकी जानेवाली गाथाके समान ही एक गाथा द्वारा दिगम्बरोंकी उत्पत्ति लगभग इसी समय प्रगट करते है । उसपर भट्टारक रत्ननंदिके 'भद्रबाहु चरित्र'
१-छत्तीसे वरिससए विकमरायस्स मरण पत्तस्स । सोरटे बलहीए उप्पण्णो सेवडो संघो ॥ ११॥-दर्शनसारः। २-दीनि० ३ पृ० ११७-११८, मनि० भा० २ पृ० १४३ व भमवु० पृ० २१४ । ३-"छवास सहस्सेहि नवुत्तरेहि सिद्धि गवस्स वीरस्स । तो बोडियाण विट्ठी रहवीरपुरे समुपन्ना ॥" किन्तु श्वेताबरोंकी यह प्रमाणभूत गाथा दिगम्बर ग्रन्थकी निम्न गाथाका रूपातर प्रतीत होता है।