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अन्य राजा और जन संघ। [६३ है। किन्तु जैन शास्त्र उन्हें गर्दभिल्लका पुत्र बताते है और गौतमीपुत्र संभवतः मेघस्वातिके पुत्र थे। इस भेदका सामञ्जस्य विक्रमादित्यको गर्दभिल्लका उत्तराधिकारी माननेसे होजाता है।
गर्दभिल्लवंश वस्तुतः आन्ध्रवंशसे भिन्न है। जैन और अजैन शास्त्र उनका उल्लेख अलग-अलग ही करते है और यह निश्चित् है कि प्रतिष्ठानपुरमे आन्ध्रवंशके राजा राज्य करने थे। अतएव प्रतिष्ठान. पुरसे आया हुआ विक्रमादित्य गर्दभिल्लका पुत्र न होकर उत्तराधिकारी होना चाहिये । सोमदेवकी 'कथासरितसागर' से प्रगट है कि गौतमीपुत्रका वंशज कुन्तल शातकर्णि, जिसका राज्यकाल ७५-८३ ई० है, कलिगके भिल्ल (गर्दभिल्ल) राजाका जामाता था और उसने पुनः कोंको उज्जैनीसे भगाकर — विक्रमादित्य' उपाधि ग्रहण की थी। इस प्रकार 'विक्रमादित्य' उपाधिधारी राजा आन्ध्रवंशमें दो हुए थे। जैन लेखकने कुन्तलको गर्दभिल्लका जमाता जानकर पहले विक्रमादित्यको भ्रमसे उसका पुत्र लिख दिया प्रतीत होता है। इस दशामें पहले विक्रमादित्य अर्थात गौतमीपुत्र शातकर्णि जैन शास्त्रोंको विक्रमादित्य प्रगट होते है। ____ "आवश्यकसूत्रमाप्य" से स्पष्ट है कि गौतमीपुत्रने नहपान शकको परास्त कर दिया था । उधर गौतमी पुत्र और ऋषभदत्तके शिलालेखों तथा नहपानके सिक्कों से प्रमाणित है कि गौतमी पुत्रने नहपानको मालवा, सौराष्ट्र आदि देशको शकोंसे मुक्त करदिया था। यह घटना ई० पू० ५८ की है । जैन शास्त्र भी विक्रमादित्यको
१-जविमोसो०, भा० १६ पृ० २५१-२७८. २-जविमोसो०, भा० १६ पृ० २५१ ।
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