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२८] संक्षिप्त जैन इतिहास । १२०ई० पूर्वमे आरम्भ हुआ था। राजा कुशान और उविमकब्धिसके लेखोंमे यही सवत मिलता है।'
दूसरा ऐतिहासिक शक संवत सन् ७८ से कुन्तल गातकर्णी द्वारा शकोपर एक बार फिर विजय प्राप्त करनेके उपलक्षमे चला था। किन्तु जायसवालजी जैन शास्त्रोंके इस उल्लेखसे कि वीर निर्वाणसे ६०५ वर्ष ५ महीने पश्चात शक राजा हुआ सन् ७८ से शकोंद्वारा भी चला एक मवत मानते है। किन्तु इस जैन उल्लेखमें एक शक राजाका होना लिखा है, न कि उसमे शक मवतके चलनेका उल्लेख है। इस दशामे जैन गाथाओक आधारसे एक
१-जविओसो० १६ पृ० २३०-२४२. २-जविओसो० भा० १६ पृ० ३००. ३-"णियाणे वीरजिणे छवाससदेसु पचवरिसंसु । णमासेसु गढेसु सजाढो सगणिो अहवा ।। ८९ ॥
-त्रिलोकप्रज्ञप्ति । 'त्रिलोकसार' में इस गाथाको निम्नप्रकार लिखा गया है:'पणछस्सयवस्स पणमास जुद गमिय वीर णिवुइदो।
सगराजो तो कक्की चदुनवतियमहिय सगमास ॥ ८५० ॥ । श्रीजिनसेनाचार्यने 'हरिवंशपुगण' में इसीको संस्कृत में इसप्रकार लिखा है:--'वर्षाणा षट्शी त्यक्त्वा पचाना मासपचक ।
मुक्ति गते महावीरे शकराजस्ततोऽभवत् ॥' इन गाथाओं में से किसीमें भी शक सवत्के चलने या उसके "प्रवर्तकका उल्लेख नहीं है । एकमात्र यही कहा गया है कि वीर निर्वाणसे ६०५ वर्ष ५ महीने पश्चात् शक गजा हुआ। अतएव इनसे शकोंद्वारा एक दूसरे सवत्के चलनेका पता नहीं चलता।