________________
प्राकथन। इन बातोको देखकर विद्वान जैनधर्मका सम्बन्ध उनसे स्थापित कैरन है। इस माक्षीसे तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथके बहुत पहले जैनधर्मका अन्तित्व प्रमाणित होता है। इस दशामें भ० पार्श्वनाथके पहले भी तीर्थहरीका होना आवश्यक है। अब यदि उनको काल्पनिक मान लिया जाय तो ई० पूर्व ८-९वीं शताब्दीके पूर्व जैनधर्मकी सत्ता न होनी चाहिये । किन्तु यह उपरोक्त पुरातत्व विषयक साभी बाधित है। अतएव भ० पार्श्वनाथके पूर्ववर्ती तीर्थकको वास्तविक व्यक्तिया मानना उचित है। जैन धर्म एक सत्य अर्थात् विज्ञान है। सत्य होनेके कारण
उसका व्यवहारिक होना लाजमी है। वस्तुतः जैनधमकी विशेषता । जैन इतिहास उसे एक ऐसा ही धर्म प्रमा
णित करता है। हा, जैनियोंकी वर्तमान शोचनीय दशा हमारी इस व्याख्याको एक अतिसाहसी-सा वक्तव्य दर्शाती है; किन्तु जरा देखिये तो आजकलके भारतीय धर्मोके अनुयायियोको! उन धर्मोके मूल सिद्धांत कुछ है और उनके अनुयायियोंका आचरण आज कुछ और है। जैनी भी अपने धर्मके मूल सिद्धांतोंसे बहुत कुछ भटक गये है । उनका पूर्व इतिहास और धर्मशास्त्र इस व्याख्याकी माक्षी है। उदाहरणत जैनधर्मके अहिंसा सिद्धान्तको ले लीजिये। आज हम सिद्धातकी जैसी मिट्टी पलीद जैनियोंने की है,
JaDr. l'ran Vath writes in the Indian Hist. Quarterly (Vol. VIII No.) "The names and symbols on Plates annexed would appear to disclose a connection between the od religious cults of the Hindus and Jainas with those of this Indus people”
--
-
-