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१५०] संक्षिप्त जैन इतिहास। जैनधर्म उन्नति पर था। खुजराहोमे इन्हीं राजासे आदर प्राप्त सूर्यवंशी पाहिलने सन् ९५४ में जिननाथके मंदिरको अनेक उद्यान वान किये थे।' सं० १२१५ को गृहपतिकुलंक पाहिलके पुत्र दंडने एक जैन-विम्बकी प्रतिष्ठा कराई थी। घटाईका प्रसिद्ध मंदिर भी इसी समयका बना हुआ है। यहांके नं० २५ वाले मंदिरमें राजपुत्र श्री जयसिहका उल्लेख है। ऐसे ही अन्य लोगोंने भी अनेक जैनमंदिर वनवाये थे। सन् १२०३में चन्देलोको मुसलमानोंने जीत लिया था। दसवीं शताब्दिके लगभग बहाड प्रान्तमें ईल नामक राजा
प्रसिद्ध हो गया है। यह जैनी था । इसने राजा ईल ओर सन् १०००में अपने नामसे ईलिचपुर (ईलेजैनधर्मका अभ्युदय। शपुर) नगर वसाया था। मुसलमानोंके हाथो
वह मारागया था। 'भक्तामरकथा' (का०२०) से प्रगट है कि नागपुरमें भी लगभग इसी समय नाभिराज नामक एक जैनधर्मानुयायी राजा था।' और 'प्रभावक चरित्र ' से प्रगट है कि सं० ११७४ में नागपुरका राजा आल्हादन नामका था, जो जैनाचार्य मुनिचन्द्रका शिप्य था ।* किन्तु बहाड़ प्रान्तमें विक्रमकी आठवीं शताब्दिसे दसवीं शताब्दि तक क्रमशः चालुक्य
और राष्ट्रकूट राजाओका राज्य रहा था। ये दोनोंही राजवंशजैनधर्मके पोषक थे; इस कारण उक्तकालमें जैनधर्मका यहां खूव प्रचार रहा था।
१-मप्रामस्मा०, पृ० ११६-११७ । २-हिवि०, भा० ५ पृ० .६८० । ३-संप्राजैस्मा०, पृ० ४३। ४-मप्राजैस्मा०, पृ० १४ भूमिका | ५-जैप्र०, पृ० २४० । *-डिजैवा० पृ० ४२ । ६-मप्राजैस्मा०, पृ० १४ भूमिका।