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__ उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म। [१४७ वह अन्तमे पिहिताश्रव नामक जैनमुनि हुये थे।' सं० १२७८में बनारसके राजासे श्वेताम्बर जैनाचार्य अभयदेवरिने 'वादीसिह का विरुद प्राप्त किया था। इसी समयके लगभग मथुरामे ग्णकेतु नामक राजा जैनधर्मानुयायी था। वह अपने भाई गुणवर्मा सहित नित्य जिनेन्द्रपूजन किया करता था। अन्तमे गुणवर्माको गज्य देकर वह जैनमुनि हो गया था। वर्मान्त नामवाले राजाओका राज्य मन्दमोर (ग्वालियर ) और गंगधारमे गुप्तकालमे था । इनमेंसे एक नग्वर्मा राजाका उल्लेख जैनोंकी द्वादशी व्रत कथामे भी है। संभवत इसी वंशका अधिकार उपरात मथुरामें हो गया होगा
और गुणवर्मा इन्हींका वंशज हो सक्ता है । मथुरामें १२-१३ वीं गताब्दिकी जैनमूर्तिया मिली है। उनमे भी तब तक वहा पर जैनधर्मका प्राबल्य प्रगट होता है।
सूरीपुर ( जिला आगरा ) का राजा जितगत्रु भी जैनी था, जो बड़े २ विद्वानोंका आदर करता था । अन्तमें वह जैनमुनि हो गया था। और शातिकीर्तिके नामसे प्रसिद्ध हुआ था। जमनाके किनारे पर स्थित असाईग्वेड़ा ग्राममें ग्यारहवीं शताब्दि तककी जैन प्रतिमाय अगणित मिलती है | जिला इटावा और आगरेके निकटवर्ती ग्रामोमें जैनध्वंशविशेषोंका मिलना, यहा पर जैनोंकी प्रधानताका द्योतक है । सचमुख भदावर प्रान्नमें हस्तिकातनगर जैनोंका मुख्य केन्द्र था। यहा विक्रमकी ११ वीं शताब्दिमे १६ वीं शता.
१-जैप्रा० पृ० २९२ । २-डिजेबा०, पृ०९।३ जे२०, पृ० २४२। ४-राइ०, पृ० १२५-१२६ । ५-भपा०, पृ० १९८17 ६-जैप्र०, पृ० २४१ ।
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