________________
गुजरात में जैनधर्म व श्व० ग्रंथोत्पत्ति । [ १४१
1
श्वेताम्बर जैनधर्मका उसका अभ्युदय विशेष हुआ था । श्वेतावर अभ्युदय । जैनाचार्योंने इस समय जैनधर्मको दिगन्तव्यापी
इ.
बनाने में कुछ उठा न रक्खा था। श्री हरिभद्रसूरि, जिनेश्वरसूरि, हेमचन्द्र आदि प्रख्यात आचार्य थे । जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागर आचार्यने श्वेतांबर यतियोका तीव्र विरोध किया था। उनके उद्योगसे खूब सुधार हुआ था तथा उन्होंने श्वेतावर साहित्यका एक नवीन मार्ग में प्रवेश कराया था । श्वेताम्बर अर्वाचीन साहित्यके वे कथे । पहिले श्वेतांबरों का केवल आगम ग्रन्थ साहित्य था, परन्तु ३-४ शताब्दियों में न्याय, व्याकरण, काव्य आदि विपयोंके गः ग्रंथ लिखे गये थे । ई० १०-११ वीं शताब्दिमें गुजरात देशमें अधिकांशत देवनागरी लिपिका प्रचार था। ईसवी पूर्वकी मागधिलिपिका विकास होते २ नागरीलिपिने अपना रूप संभाल लिया था । जैनोंद्वारा इस लिपिका वहु प्रचार हुआ और प्राचीन गुर्जर साहित्य भी उन्हींका ऋणी है। जैनोंके 'सप्तक्षेत्रीरास ' 'गौतमरास' आदि ग्रंथ गुजरातीके प्राचीन साहित्यके नमूने है । इस प्राचीनकालसे जैनोंने गुजराती साहित्यकी अच्छी सेवा की थी। जैनाचार्योने बौद्धोंके न्यायग्रंथोंपर टिप्पण भी लिखे थे | किन्तु कुमारपालके उपरान्त गुजरातमे जैनोंका ह्रास होना शुरू हो गया । अजयपाल के विद्रोहसे उसका सूत्रपात हुआ सही, किन्तु मुसलमानोंके आक्रमणसे उसका सत्यानाश हुआ। हजारों जैनमंदिर मसजिद बना लिये गये । जैनलोग अपनी प्राणरक्षामें धर्म प्रभावनाके कार्योंको
3
·
"
१ - जैहि० ३ - पूर्व०, पृ० १४ ।
भा० १३ पृ० ४१७ । २ - गुसापरि०, पृ० ७२ ।