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गुजरातमें जैनधर्म व श्वे० ग्रंथोत्पत्ति। [१३३ सुरक्षित रक्खा था। विधवाओंकी सम्पत्तिको ग्रहण करना भी उसने छोड़ दिया था। मद्यविक्री उसने क़ानूनन नाजायज ठहरा दी थी और जुआ तथा शिकार खेलनेके विरोधमे भी कानून बनाये थे। कुमारपालके इस अनुकरणीय कार्यका प्रभाव तत्कालीक अन्य राजाओं पर भी पडा था। राजपूतानेके कई राजाओंने हिंसा रोकनेके लेख खुढवाये थे, जो अबतक विद्यमान है। कुमारपालने शजयजी गिरनारजी आदिकी यात्राका एक जनसंघ निकालकर ' संघपति की उपाधि ग्रहण कीथी और अनेक जैनमंदिर बनवाये थे। औषधालय भी अनेक खुलवाये थे, जिनमें गरीबोंको मुफ्त दवा और आहार मिलता था। उसने पोषधशालायें और उपाश्रय भी बनवाए थे। जिस समय कुमारपाल राजगद्दीपर आरूढ हुये उस समय
वह लिखना पढना कुछ भी नहीं जानते थे; कुमारपाल व साहित्य किंतु कपरदिन नामक राजमंत्रीके कहनेसे वृद्धि। उनने एक वर्ष में ही पढ़ना सीख लिया।
अकबरके समान उन्हें विद्वानोंकी संगतिका बड़ा शौक था । वह विद्वानोंके व्याख्यान और उपदेश बड़े चावसे सुना करते थे। उनके गुरू हेमचन्द्राचार्य बड़े प्रख्यात् और विद्वान् श्वेतांवर साधु थे। उनका जन्म अहमदावादके निकट धंधुक ग्राममें सन् १०८८ में एक जैन वैश्य परिवारके मध्य हुआ था और उनका गृहस्थ दशाका नाम चङ्गदेव था। उनके विद्यागुरु देवचंद साधु थे; जिनने कैम्बे लेजाकर इनको पढ़ाया था । श्वेतांवर संप्रदायमें उनकी
१-सडिजै० पृ०९-१० । २-राइ० भा० १ पृ० ११ । ३-वप्राजैस्मा० पृ० २१० व सडिजे० पृ०१०-११॥