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गुजरातमें जैनधर्म व श्वे० ग्रंथोत्पत्ति। [१२१ भरिपजो, विगपगेही-विगतगिद्धो; इत्यादि, इत्यादि । (देखो सर आसुतोष मेमोरियल बॉल्यूम, भा० २ पृ० १०१-१०३)।
अतएव यह बहुत कुछ संभव है कि क्षमा श्रमणके समयमें श्वेताम्बर आगम ग्रंथोंमें बौद्ध साहित्यसे साहाय्य ग्रहण किया गया हो। डो० वुल्हर भी इस बातको संभव बताते है ।* विक्रम संवत् ५५० मे ७९०के वीचमे हैहय अथवा कल
चूरि वंशके राजाओंका राज्य भी चेदी और लचूरी राजा गुजरात (लाट )में था।' इस वंशके राजा और जैनधर्म। भारतमें एक प्राचीन कालसे राज्य कर रहे
थे। किन्तु इनका पूर्व वृतान्त ज्ञात नहीं है। हैहयवंशी राजा अपनी उत्पत्ति नर्मदा तट पर स्थित माहिप्मतीके राजा कार्तवीर्यसे बतलाते है। इनकी उपाधि 'कालंजर-परवारा धोम्बर' भी है । इससे इनका निकास कालंजर नामसे हुआ अनुमान किया जाता है । कनिधम सा के अनुसार ९ मीसे ११ मी शताब्दि तक हैहय गजागण बुन्देलखंडमें चेदिवंशकी एक बलवान शाखा थी। चेदि राष्ट्रकी उत्पत्ति जैनगजा अभिचंद्रसे हुई थी।
और चंदिवंशमे जैनसम्राट् खारवेल हुये थे । हैहय अथवा कलचूरि लोग भी जैनी थे। 'कलचूरि' शब्दका अर्थ ही उनके जैनत्वका द्योतक है अर्थात 'कल' देह और चूरि-नाश करना । देहको नाश
"In the late fixing of the canon of the Swetamberas in the sixth century after Christ, it may have been drawn from Buddhist works, Indian sect of the Jaisas p 45.
१-भाप्रारा०, मा० १ पृ० ३९। २-एइ०, भा० २ पृ०८। ३-बंगाजैस्मा०, पृ० ११३-११९ । ४-हरि०, पृ० १९४ ।