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गुप्त साम्राज्य और जैनधर्म। [१०३ कि पहले वह वौद्ध था, किंतु कारणवश रुष्ट होकर उसने बौद्धोंको नष्ट करनेकी आज्ञा देदी थी। बौद्धधर्मके कितने ही स्तूप और विहार उसने तुड़वाडाले और लाखों मनुप्योंके प्राण ले लिये थे। वह कट्टर शव था और अन्य धर्मोका तिरस्कार करता था। देशी राजाओंने उसके विरुद्ध एक संघ रचा, जिसके नेता मालवानरेश यगोधर्मन और मगधके राजा नृसिहवालादित्य थे । सन् ५२८ ई० के लगभग इस संवने उसे कहैरार नामक स्थानपर हरा दिया। और वह काश्मीरकी ओर भाग दिया। मिहिरकुलके बाद भारतके राजा यशोधर्मन हुए। यशोधर्मन
__ बड़े प्रतिभाशाली राजा और वीर योद्धा थे। यशोधर्मा । मन्दसौरमे मिले हुए लेखसे प्रगट है कि
होंगर अंतिम विजय उसीने प्राप्त की थी। उसका राज्य बहुत बडा था। ब्रह्मपुत्रनदीसे पूर्वी घाटतक और हिमालय पर्वतसे समुद्र तटके राजाओंको उसने अपने आधीन किया' था। मि० जायसवाल यशोधर्मनको पुराण वर्णित कल्कि अवतार प्रमाणित करते है। जैन ग्रंथोंमे कल्किा नाम चतुर्मुख, उसके पिताका नाम इन्द्र और पुत्रका नाम अजितंजय मिलता है । कल्किने ४२ वर्ष राज्य किया था। अपनी दिग्विजयके उपरात वह जैन मुनियोंको खूब त्रास देने लगा था। हिंदुओं के कल्किपुराणसे भी यह बात प्रगट है। अन्तमें उखका नाश एक असुर द्वारा हुआ
१-भाइ० पृ० ९८ । २-भाप्रारा० २ पृ० ३३२ । ३-जेहि० भा० १३ पृ० ५१६-५२२) ४-त्रिलोकप्रज्ञप्ति गा० १०१-१०६६ हि० भा० १३ पृ० ५३४ । ५-जैहि० भा० ५२२ ।