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गुप्त साम्राज्य और जैनधर्म । [१०१ बंगालमें इस कालमें पहाड़पुरका निग्रंथ संघ प्रसिद्ध था ।x
उसके अध्यक्ष आचार्य गुहनंदि, संभवतः नंदि बङ्गाकलिङ्गमें जैनधर्म । संघके थे। बौद्धग्रंथ दाठावंसोसे प्रगट है कि
पटनाका तत्कालीन राजा पाण्डू भी जैनभक्त था। कलिङ्गमें जैनधर्म अब भी राष्ट्रधर्म बना हुआ था। वहांका गुहगिव नामक राजा दिगम्बर जैनधर्मका अनुयायी था । इस प्रकार जैनधर्म उस समय उन्नत रूपमें था। विद्याके साथ ही ललितकलाकी भी उन्नति गुप्तराजाओंके समय
विशेष हुई थी। स्थापत्य भास्कर-शिल्प गुप्तकालकी ललितकला । और चित्रकारी तो इस समयकी देखने
बनती है। संयुक्तप्रांतके झांसी जिलेमें ललितपुरके पास देवगढ़के जैनमंदिर इस समयके भास्कर शिल्पका सर्वोत्कृष्ट नमूना है । कितु दुःख है कि जैनोने इस रम्य और पवित्र स्थानके प्रति उदासीनता ग्रहण कर रक्खी है। सरकारी पुरातत्व विभा__गके अधिकारमे उन्होंने इसको लेलिया था कितु बहुत प्रयत्नके बाद
वह क्षेत्र पुनः जैनोंके हाथमें आया है । इस समय धातुकी अच्छी२ मूर्तिया बनी मिलती है । दिल्लीका लोहस्तम्भ भी इसी समयका बना हुआ अनुमान किया जाता है; जो अपने अदभुतपनके लिये प्रसिद्ध है । अजन्ताकी गुफाओंका आलेख्य और चित्रकारी सर्वोत्कृष्ट है। ये गुफायें बहुत प्राचीन हैं, परन्तु इनमें सबसे बढ़िया काम इसी समयका बना हुआ है। मथुरा और काशी भी ललितकलाके केन्द्र
xइंहिका० भा० ७ पृ० ४४१।। +दाठावसो अ० २ व दिगम्मरत्व और दि० मुनि पृ० १२५॥