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________________ संक्षिप्त जन इतिहास । ओमिया नगरको लक्ष्य करके इनका नामकरण 'ओसवाल' होगया है। इनमे अधिकाश लोग अब व्यापार करने लगे है । इस कारण यह लोग भी वैश्य माने जाते है । अंग्रेजोंके भारतमे अधिकार जमानेके समय तक इनमे बडे २ योद्धा हो चुके है। अब भी कई देशी रियासतोंमे ओसवाल लोग दीवान या मंत्रिपदपर नियुक्त है। लमेचू (लम्बकञ्चुक) जातिका निकास भी लगभग इसी समय हुआ था। पन्द्रहवीं शतान्डिके गिलालेखो लम्वकञ्चुक जातिका एव. पट्टावली आदिसे इस जातिका मूलमें जन्म। . यदुवशी होना प्रमाणित है । कहा जाता है कि यदुवंशमे एक राजा लोमकरण (या लम्बकर्ण ) नामक हुये थे । और वह लम्बकाञ्चन नामक देगमें जाकर राज्य करने लगे थे। उन्हींकी संतान 'लग्वकाञ्चन' नामक देशकी अपेक्षा लग्वकञ्चुक नाममे प्रख्यात हुई थी। इसपरसे श्री० पण्डित झम्मनलालजी तर्कतीर्य आदि लंबेचू विद्वान् अपनी जातिका निकास भगवान् नेमिनाथजीके तीर्थमे हुआ अनुमान करते है कितु यह ठीक नहीं है, क्योंकि भगवान् नेमिनाथजीके मोक्ष चले जानेके बाद द्वारिका सब ही यदुवंशियों समेत जलकर भस्म होगई थी। केवल कृष्ण, बलराम और जरतकुमार बचरहे थे । कृष्ण और बलरामकी भी जीवनलीलायें शीत्र समाप्त होगई थीं । यदुवंशका नाम लेवा मात्र जरत्कुमार रह गया । इस जरत्कुमारकी पट्टरानी कलि १-मप्रांजैस्मा०, पृ० १५२ । २-प्राजलेस०, भा० १ पृ० ८३-८४ । ३-लंवेचू जातिका परिचय, नामक पुस्तक देखो। -
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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