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८२] संक्षिप्त जैन इतिहास । कि उपजातियोकी जड बौद्व कालमे पड गई थी और वह गुप्तकालमे आकर पल्लवित हुई थी। अग्रवाल जातिकी उत्पत्ति लगभग इसी समय हुई थी। कहते
हे कि अयोन्याके राजा मानवाताकी ५२ अग्रवाल वैश्य जाति। वीं पीढीमे वीर निर्वाणमे १९८१ वर्ष पूर्व
श्री नमिनाथजीक तीर्थकात्मे अग्रमेन नामक राजा थे। उनके पिता महावीर दिगम्बर मुनि गये थे । उनके मुनि होनेपर राजकुमार अग्रमेनको वीर नि० पूर्व ४९.४६ मे राजगद्दी मिली थी। सन् ४५२१ वी० नि० पूर्वमे उन्हाने मिश्र देशके जैनधर्मी गजा 'कुरुपविन्द पर आक्रमण किया था और इस युद्धमे यह वीर गतिको प्राप्त हुये थे । राजा अग्रसेनने वेदानुयायी पातञ्जलि नामक ऋपिके उपदेगरे अपने पितृधर्म-जैनधर्मका परित्याग कर दिया था । यदि यह पातञ्जलि अपि पातञ्जलिभाप्य के कर्ता है, तो राजा उग्रनका समय भगवान नेमिनाथजीके तीर्थमे होना अशक्य है, परन्तु ऐसा कोई साधन नहीं है जिसके आधारपर उक्त दोनों पातञ्जलि एक माने जावें । जो हो, इन्हीं गजा अग्रसेनके १८ पुत्र हुये थे । जिस समय इन १८ पुत्रोंकी संतान राजच्युत होगई, तो वह राजा र ग्रोनके नाम अपेक्षा 'अग्रवाल' नामले प्रसिद्ध हुई । प्राचीन जैन लेखमे इसका उल्लेख 'अग्रोत' वशके रपमे हुआ मिलता है। राजा अग्रसेनकी सतति। कई पीडियोतक वैदिक धर्मकी मान्यता रही थी। किंतु उपर त अरोड़ापति राजा दिवाकरदेवके राज्यमे वीर नि० सं०५१५५६५के लगभग (वि० सं० २५-७७
१-बुई०, पृ० ५५-५९ २-भाइ०, ९३-९९