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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर। [७५ वे उन सबपर विजयी हुये थे और उन्होंने सर्वज्ञ होकर 'विजयधर्म' प्रतिपोषित करने का उच्च निनाद किया था। केवलज्ञान प्राप्तिकी महत्वपूर्ण घटनाके विषय में कहा गया है कि एक 'सुव्रत' नामक. दिनको ऋजुकूला अथवा ऋजुपालिका नदीके वामतटपर जृम्भक नामक ग्रामके निकट पहुंच कर, अपराह्नके समझ अच्छी तरहसे षष्ठोपवातको धारण करके सालवृक्षके नीचे एक चट्टानपर आसन जमाकर महावीरजीने वैशाप शुक्ला दशमीके तिथिमें सर्वज्ञपदको प्राप्त किया था। इस समय उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र और विनयमुहूर्त था। जिस स्थानपर भगवानने केवलज्ञानकी विभूति पाई थी, वह स्थान सामाग नामक रुपकके खेतमें था और एक प्राचीन मंदिरसे उत्तर पूर्वकी ओर था। वहां महावीरनी सर्वज्ञ हुये और परम वंदनीय परमात्मा होगये थे। वह शुद्ध बुद्ध चैतन्य स्वरूप सशरीर ईश्वर अथवा पूज्य अहंत या तीर्थकर हुये थे। समस्त लोकमें आनंद छागया और देवोंने आकर उस समय आनंदोत्सव मनाया था।
आन स्पष्टरूपमें यह विदित नहीं है कि भगवान महावीरका भगवान महावीरको केवलज्ञान स्थान कहाँपर है ? भगवानके केवलहान-स्थान । जन्म व निर्वाणस्थानोंके समान जैन समाजमे किसी भी ऐसे स्थानकी मान्यता नहीं है कि वह केवलज्ञान प्राप्तिका पवित्र स्थान कहा नासके। जयपुर रियासतके चांदनगांवमें एक नदीके निकटसे भगवान महावीरजीकी एक बहुप्राचीन मूर्ति मूगर्भसे उपलब्ध हुई थी। वह मूर्ति वहीपर एक विशाल मंदिर
1-उपु० पृ० ६१४ व Js. I, 201. २-आचाराङ्ग Is. I. pp. 20/57.
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