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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर ।
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नाथके तीर्थ में जैनधर्मसे हुआ मानना. कुछ अनुचित नहीं जंचता है । गोशाल और पुरण इस संप्रदाय के मुख्य नेता थे । गोशालने 1 - इस धर्मका प्रचार २४ वर्षतक करके श्रावणी में हालाहलाकी कुंभारशाला में महावीरजीफे निर्वाणसे सोलह वर्ष पहले मरण किया था । : इस समय उसने अपने कृतदोपों का प्रायश्चित्त भी लेलिया था और प्रगट कर दिया था कि वह सर्वज्ञ नहीं है । ' आजीविक साधु पच्युत अथवा सहस्रार स्वर्गतक गमन करते हैं। गोशालके मृत्यु उपरान्त भी आजीविकमतका प्रचार रहा था । संभवतः महापद्म नन्दः आजीविक था और अशोकने नागार्जुनी पर्वतपर इनके लिये गुफायें बनवाई थीं।
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उपरोक्त कथन से यह स्पष्ट है कि भगवान् महावीरकी छद्मस्थ गोशाल भगवान के दशामें मक्खलि गोशाल उनके साथ अवश्य, · साथ रहा था, परन्तु रहा था । श्वेताम्वर शास्त्र तो यह स्पष्टतः . उनका शिष्य नहीं था । प्रगट करते ही हैं, किन्तु दिगम्बर, शास्त्र के . - इस कथन से कि भगवान् महावीरजी के समोशरणमें उसे अमस्थान.: - न मिलनेके कारण वह उनसे रुष्ट होकर प्रगट है कि वह भगवान महावीरजीके समय अवश्य उनके निकट था । अतः वह भगवान महावीर द्वारा:उपदेश प्रारम्भ होनेके जरा पहले हीसे अपने अज्ञानमतका प्रचार करने लगा था। डॉ० हाणले सा० भगवान महावीरके केवलज्ञान.
प्रथक होगया था, यह केवलज्ञान प्राप्त करने के..
१ - विशेपके लिये 'आजी०', 'भम', 'वीर' वर्ष 3 अंक १२-१३ व दिगम्बर जैन, भा० १९ अंक १-२ ६-७ से २ - त्रिलोकसार ५४५ व आचारसार १२७/६ । ३१५- आजी० पृ० ६७-६९ |