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६४] संक्षिप्त जैन इतिहास होंगे। महावीरजीने उत्तरमें कहा कि 'लताका नाश होगा, किंतु उसके बीजोंसे फिर उसकी उत्पत्ति होगी।' गोशालने इसपर विश्वास नहीं किया। उसने लौटकर लताको नौकर फेंक दिया। होनीके सिर इसी समय पानी भी चरस गया, जिससे उसकी जड़ हरी होगई और उसमें बीज लग आये।
जब गोशाल और महावीरजी वहांसे फिर निकले तो गोशालने महावीरजीको उनके कथनकी याद दिलाई और कहा कि लता नष्ट नहीं हुई है । महावीरजीने लतापर तस्तक नो हालत गुजरी थी, वह ज्योंकी त्यों सब बात बता दी। इस घटनासे गोशालने यह विश्वात कर लिया कि केवल वृक्षलता ही नष्ट होनेपर फिर उसी शरीरमें जीवित होते हों, केवल यही बात नहीं है; चलिक प्रत्येक जीवित प्राणी इसी प्रकार पुनः मृतशरीरमें जीवित (Reanimate) होसक्ता है ! भगवान महावीर गोशालकी इस मान्यतासे सहमत नहीं हुये । इप्तपर गोशालने अपनी रास्ता ली और तपश्चरणका अभ्यास करके उसने मंत्रवादमें कुछ योग्यता पाली । फलतः वह अपनेको 'जिन' घोषित करने लगा और श्रावस्ती में जाकर मानीविक संप्रदायका नेता बन गया । इसी समय अपनी संप्रदायके सिद्धांतोंको उसने निश्चित किया था; जिनको उसने 'पूना के 'महानिमित्त' नामक एक भागसे लिया था। __भगवानने उसके जिनत्वको स्वीकार नहीं किया था । गोशालने जैन संप्रदायको कष्ट पहुंचानेके बहु . प्रयत्न किये थे और मन्ततः उसकी मृत्यु बुरी तरह श्रावस्तीमें एक कुम्भारके घर हुई थी।
१-ऑजी पृ०४।।
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