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संक्षिप्त जैन इतिहास । श्वेताम्बर शास्त्रोंमें इसके अतिरिक्त भगवानपर अन्य बहु
... तसे उपसर्ग होने का वर्णन मिलता है; किन्तु अन्य उपसर्ग।
' उनमें ऐतिहासिक तत्व बहुत कम होने और उनमें मात्र भगवानके कठोर तपश्चरण और महान सहनशीलताको प्रगट करने का मूल उद्देश्य रहने के कारण उनको यहांपर लिखना अनावश्यक है। सचमुच भगवान महावीरके जीवन का महत्व उनकी इस कष्टसहिष्णुतामें नहीं है, प्रत्युत उस आत्मबल और देह विरक्तिमें है, जहांसे इस गुणका और इसके साथ २ और भी कई गुणोंका उद्गम हुआ था । एकवार अपने अनुपम सौन्दर्यसे विश्वको विमोहित करनेवाली अनेक सुन्दर सलोनी देवरमणियां महावीरजी के पास आकर रास रचने लगी और नानाप्रकारके हावभाव, कटाक्ष
और मोहक अंग विशेषसे वे अपनी बेलि-कामना प्रगट करने लगी, कि जिसे देखकर किसी साधारण युवा तपस्वीका स्खलित होनाना बहुत सम्भव था; किन्तु भगवान महावीरपर इस कामसैन्यका भी कुछ असर न हुमा । महावीर मजेय थे । फलतः देव. रमणियां अपनाता मुँह लेकर चली गई। यह घटना उनके मात्मबल और इंद्रिय निग्रहकी पूर्णताकी द्योतक है। . श्वेताम्बरोंके ' भगवतीसूत्र' में कथन है कि गृह त्यागकर मक्खलि गौशाला
__दूसरे वर्ष जव भगवान् छद्मस्थ दशामें राजगृहके
निकट नालन्दा नामक गांवमें विराजमान थे; तब मक्खलिपुत्र गोशाल नामक एक भिक्षु भी भगवानके भतिशयको और राजगृहके श्रेष्ठी विनय द्वारा उनका विशेष भादर होता १-चभम० पृ० १५४-१५५ । ६-भगवती १५-उद० Appendir.