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________________ - - - ज्ञा त्रिक क्षत्री और भगवान महावीर। [५७ स्मथवा वनखंड उद्यानमें पहुंचकर उत्तराभिमुख हो अशोकवृक्ष के नीचे रत्नमई शिलापर विराजमान होगए थे। उन्होंने सब वस्त्राभूषण इससमय त्याग दिये थे और सिद्धोंको नमस्कार करके पंचमुष्टि कोच जिया था। इसप्रकार निर्ग्रन्थ श्रमण हो वह ध्यानमग्न होगए और उनको शीघ्र ही सात लब्धियां एवं मनःपर्यय ज्ञानकी प्राप्ति हुई थी। श्वेताम्बर आम्नायके शास्त्रोंमें लिखा है कि भगवान दीक्षा भगवान महावीरकी समय नग्न हुये थे । इन्द्रने दीक्षा समयसे दिगावर दोक्षा। एक वर्ष और एक महीना उपरान्त 'देवदृष्य वस्त्र धारण कराया था। इसके पश्चात् वे नग्न होगये थे। भी वह एकत्रित हुआ था। इसीतरह श्वेताम्बर कहते है कि भगवान महावीरके उपरान्त जनसंघ पाटलीपुत्र में एकत्रित हुआ था। और उसने सिद्धान्तको मुव्यवस्थित किया था। फिर बालभीमें भी वह एकत्र हुआ था। मारांशतः भगवान महावीरके जीवन सम्बन्धमें जो घटनाएं केवल श्वेताम्बर प्रन्योंमें लिखी हुई है। उनका सादृट्य म० चुनके जीवनसे ग्वब है और श्वे. मागम ग्रन्थों का संकलन भी प्रायः बौद्धोके पिटक अन्यों के समान मिलता है। अतः यह जंचता है कि उनने बौद्धोंके आधारसे उक्त जीवन घटनाएं लिखी है। इस अवस्थामें उनपर विश्वास करना ज़रा कठिन है। १-जैनशाखो ज्ञान पांच प्रकारका बसलाया है:-(१) मति, (२) श्रुत, (३) अवधि, (१) मनःपर्यय, (५) केवटज्ञान । मतिज्ञान संसारके दृश्य पदार्थोका ज्ञान है, जो इन्द्रियों व मनद्वारा जाना जासक्ता है। मतिज्ञानने साथर शाखोंके स्वाध्याय और अध्ययनसे प्राप्त पदार्थोके ज्ञानको श्रुतज्ञान कहते हैं। उन सब बातोंका ज्ञान नो वर्त रही हो विना वहां जाएही चैठे बैठे जान लेनेको अवधि कहते हैं। दूसरोंके मनोभावको जान लेना मनःपर्यय है और जगतके भूत भविष्य वर्तमानके समस्त पदार्थीको युगपत् जान लेना केवलज्ञान है । २-Js. I. P. 79.
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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