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संक्षिप्त जैन इतिहास | भुक्त होने के कारण यह लोग बड़े धर्मात्मा और पुण्यशाली थे। वे पापकर्मोसे दूर रहते थे और पापसे भयभीत थे । वे हिंसाजनक बुरे काम नहीं करते थे। किसी प्राणीको कष्ट नहीं देते थे । और मांस भोजन भी नहीं करते थे। उनकी ऐहिक दशा भी खूब समृद्धिशाली थी और उनका प्रभाव तथा महत्व भी विशेष था। उनका सम्बन्ध उनके प्रमुख द्वारा उस समयके करीबर सब ही प्रतिष्ठित राज्योंसे था । जैनियोंके अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीरका जन्म भी इस वंशमें हुआ था, यह लिखा जाचुका है।
भगवान महावीरके पिता नृप सिद्धार्थ थे । यह राजा सर्वार्थ राजा सिद्धार्थ और रानी श्रीमतीके धर्मात्मा, न्यायी और ____ और ज्ञानवान वी-पुत्र थे। इनको श्रेयांस और
रानी त्रिशला। जसंश भी कहते थे। यह काश्यपगोत्री इक्ष्वाक अथवा नाथ या ज्ञातवंशी क्षत्री थे। इनका विवाह वैशाली के लिच्छिवि क्षत्रियों के प्रमुख नेता राजा चेटककी पुत्री प्रियकारिणी अथवा त्रिशलासे हुआ था। त्रिशलाको विदेहदत्ता भी कहते थे। यह परम विदुषी महिलारत्न थीं। श्वेताम्बर शास्त्रों में नृप सिद्धार्थको केवल क्षत्रिय सिद्धार्थ लिखा है । इसकारण कतिपय विहान उन्हें साधारण सरदार समझते हैं, किंतु दिगम्बरामायके ग्रंथों में उन्हें स्पष्टतः राजा लिखा है। राजा चेटक्के समान प्रसिद्ध राजवंशसे उनका सम्बंध होना, उनकी प्रतिष्ठा और आदरका विशेष प्रमाण है। वह नाथवंशके मुकुटमणि थे। ऐसा . १-Js. KLV. 416. २-आसू० १११५५१५. Js. XXII. 193. ३-उ० पु० पृ. ६०५ । ४-Js. XXII. 193.