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संक्षिप्त जैन इतिहास |
बहु राजनीतिमें कितने निपुण थे और उनकी प्रतिष्ठा आसपास के राज्यों में कितनी थी, यह इसी बात से अंदाजी नासक्ती है कि वह बज्जियन प्रजातंत्र राज्य के प्रमुख राजा चुने गये थे । पराक्रम और वीरता में भी वह बड़े चढ़े थे। उस समय के बलवान राजा श्रेणिक बिम्बसार से संग्राम ठानने में वह पीछे नहीं हटे थे और गांधार देशके सत्यक नामक राजासे भी उनकी रणांगण में भेंट हुई थी और वह विजयी होकर छोटे थे । इसी तरह वह धार्मिक निष्टामें भी सुदृढ़ थे। जिनेन्द्र भगवानकी पूजा-अर्चा करना वह रणक्षेत्र में भी नहीं भूलते थे ।
राजा चेटक के दश पुत्र थे, जो (१) घन, (२) दत्तभद्र, (३) उपेन्द्र, (४) सुदत्त, (५) सिंहभद्र, (६) सुकुंभोज, (७) सकंपन, (८) सुपतंग, (९) प्रभंजन और (१०) प्रभास के नाम से प्रसिद्ध थे । इन दश भाइयोंकी सात बहिनें थीं। इनमें सबमें बड़ी त्रिशला प्रियकारिणी भगवान महावीरकी माता थीं । अवशेष मृगावती, सुप्रभा, प्रभावती, चेलिनी, ज्येष्ठा और चंदना नामक थीं ।
मृगावतीका विवाह वत्सदेश के कौशाम्बीनगर के स्वामी चंद्रराजा शतानीक और वंशी राजा शतानीक के साथ हुआ था । वत्सराज उदयन् । इनके पुत्र वत्सराज उदयन् उम समय के राजाओं में विशेष प्रसिद्ध थे | उज्जैनीके राजा चंडप्रद्योतनूकी राजकुमारीसे इन्होंने बड़ी होशियारी से विवाह कर पाया था । वत्सराजकी इस प्रेमकथाको लेकर 'स्वप्न वासवदत्त' नाटक नादि ग्रंथ बचे गए हैं । शतानीक परम जैनधर्म भक्त थे। जिस समय भगवान
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१ - उ० पु०, १० ६३४-६३५ । २-उ० पु० पृ० ६३५ ।