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शिशुनाग वंश। बौड ग्रंथोंसे पता चलता है कि उसने यह दुष्ट कार्य देवदत्त नामक एक चौदसंघद्रोही साधुके बहकानेसे किया था।
कुणिक अजातशत्रुका सम्पर्क बौद्ध संघसे उस समयसे था, नब वह राजकुमार ही था । और ऐसा मालूम होता है कि इस समय वह बौद्धभक्त होगया था और अपने पिताको कष्ट देने लगा था क्योंकि वह जनधर्मानुयायी थे। अपने जीवन के प्रारंभमें मनातशत्रु भी जन था; यही कारण है कि उनको बौद्धग्रंथों में तब सब दुष्कर्मोका समर्थक और पोषक' लिखा है। बौद्ध अंथोंमें जनोंसे घोर स्पर्दा और उनको नीचा दिखानेका पद पदपर अविश्रान्त प्रयत्न किया हुआ मिलता है। ऐसी दशामें उनके कथनको यद्यपि साम्प्रदायिक मत पुटिके कथनसे अधिक महत्त्व नहीं दिया जातक्ता । तो भी उक्त प्रकार कुणिकका पितृद्रोही होना इसी क्टु साम्प्रदायिकताका विषफल मानना ठीक जंचता है। यही कारण है कि वौडग्रंथ श्रेणिक महाराज के विषयमें मन्तिम परिणामका कुछ उल्लेख नहीं करते । किन्तु इस ऐतिहासिक घटनाका मन्तिम परिणाम यह हुमा था कि कुणिकको
अपनी गल्ती सूझ गई थी और माताके समझानेसे वह पश्चात्ताप " करता हुमा अपने पिताको बन्धन मुक्त करने पहुंचा किन्तु श्रेणिकने उसको और कुछ अधिक कष्ट देने के लिये माता जानकर अपना
1-मम०, पृ० १३५-१५३ । २-भमबु०, परिशिष्ट और केहि ६० पृ० १६१-१६३ । ___ * हि १० १० १८४ वेताम्बरों के निर्यावलीसूत्र में इस घटनाका वर्णन है । इंए• भा० २११० २१ । ।