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१०] संक्षिप्त जैन इतिहास । तब उन्होंने जैनधर्म प्रभावनाके लिये अनेक कार्य किये थे। जब जब भगवान महावीरका समोशरण राजगृहके निकट विपुनाचल पर्वत पर पहुंचा था, तब तब उन्होंने राजदुन्दुभि वनवाकर सपरिचार और प्रजा सहित भगवानकी वन्दना की थी। उन्होंने कई एक जन मंदिर बनवाये थे । सम्मेदशिखर पर जो जन तीर्थंकरों के समाधि मंदिर और उनमें चरणचिह्न विराजमान हैं, उनको सबसे पहिले फिरसे सम्राट् श्रेणिकने ही बनवाया था। इनके सिवाय जैनधर्मके लिये उन्हों और क्या २ कार्य किये, इपको जानने के लिये हमारे पाम पर्याप्त साधन नहीं है । तो भी जैन शास्त्रों के मध्ययनसे उनके विशेष कार्यों का पता खुब चलता है और यह स्पष्ट होजाता है कि इस राजवंशमे जैनधर्मकी गति विशेष थी। श्रेणिरुके पुत्रों से कई भगवान महावीरके निकट जैन मुनि होगये थे। सम्राट् णिक क्षायिक सम्यग्दृष्टी थे परन्तु वह व्रतों का अभ्यास नहीं कर सके थे। इपपर भी वह अपने धर्मप्रेमके अटूट पुण्य प्रतापसे आगामी पद्मनाम नामक प्रथम तीर्थकर होंगे। ऊपर कहा जाचुका है कि सम्रद श्रेणिकके ज्येष्ठ पुत्र अभ
___यकुमार थे और वही युवराज पदपर रहकर युवराज अभयकुमार।
""बहुत दिनोंतक राज्यशासनमें अपने पिताका हाथ बटाते रहे थे । फलतः मगधका गज्य भी बहार दूग्नक फैल : गया था। अपने पिताके -समान अभयकुमार भी एक समय बौद्ध थे किंतु उपरान्त वह भी जैनधमके परमभक्त हये थे। बौद्धग्रन्थसे
१-स्व विन्सेन्ट स्मिथ साहबने उन्हें एक जैन राजा प्रगट किया है। महिइ. पृ० ४५ । २-ऐशियाटिक सोसाइटी जर्नल, जनवरी १८२४ व म०म० पृ० १४७। ३-भाइ०, पृ० ५४ ।