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संक्षिप्त जैन इतिहास । किन्तु राजा उपश्रेणिककी पट्टरानी इन्द्राणी नामक क्षत्री
कन्या थी। उनके गर्भसे सम्राइ श्रेणिक विषश्रेणिक विश्वसार।
सारका जन्म हुमा था | उपश्चेणिकके पश्चात् मगधराज्यके अधिकारी श्रेणिक महाराज ही हुए थे; यद्यपि महाराज उपश्रेणिकके देहांत होनेके पश्चात् नाम मात्रको कुछ दिनोंके लिये मगध के राज्य सिंहासन पर चिलात पुत्र भी आसीन हुआ था। किन्तु उसके अन्यायसे दुखी होकर प्रजाने श्रेणिक विवस्तारको राज्य सिंहासन पर बैठाया था। चिलातपुत्र प्राण लेकर भागा और मार्गमें वैभार पर्वतपर मुनिसंघको देख वह वहां पहुंचकर दत्तमुनि नामक आचार्यसे मैन साधुनी दीक्षा लेकर तपश्चरणमें लग गया था। वह शीघ्र ही इस नश्वर शरीरको छोड़कर सर्वार्थसिहि नामक विमानमें देव हुआ। इधर सम्राट् श्रेणिक विम्बसार राज्याधिकारी हुए और नीति पूर्वक प्रजात्रा पालन करने लगे थे। भारतीय इतिहासमें यही पहिला राना है, जिसके विषयमें कुछ ऐतिहासिक वृत्तांत मालूम हुमा है।
जिस समय चिलातपुत्रको उपश्णिकने राजा बनाया था, शेणिका प्रारंभिक उस समय उन्होंने श्रेणिकको देशसे निर्वासित
जोबना कर दिया था। अनेक शास्त्रों और क्षत्रीधर्मकी • प्रधान शस्त्र विद्यामें निपुण वीर श्रेणिक, पिताकी आज्ञाको ठीक रामचन्द्रनीकी तरह शिरोधार्य करके अपनी जन्मभूमिको छोड़कर चले गये थे। वह. वेणपद्म नामक नगरमें पहुंचकर सोमशर्मा नामक ब्राह्मणके यहां अतिथि रहे थे। सोमशर्माकी युवा पुत्री नन्दश्री
१-आक: भा० ३ पृ० ३६ ॥