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मौर्य-साम्राज्य। शाखाचार्य, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय आदि दस पूर्वधारी मुनि हुये थे। संप्रतिके समयमें संभवतः क्षत्रिय अथवा जयाचार्य विद्यमान होंगे। श्वेताम्बरोंका कथन है कि महावीरजीसे २२८ वर्ष बाद जैन
संघमें गंग नामक पांचवां निहन्ट उत्पन्न हुमा सेठ सुकुमाल ।
' था; किंतु वह भी निष्फल गया था। उज्जनीके प्रसिद्ध सेठ सुकुमालको भी वह इसीसमय हुये अनुमान करते हैं, परंतु यह बात ठीक नहीं, क्योंकि इससमय मोक्षमार्ग बन्द था । - मंप्रतिके बाद मौर्यवंशमें पांच राजा और हुये थे। परन्तु अन्तिम मौर्य राजा और उनके विषयमै कुछ भी विशेष वृतान्त मौर्य साम्राज्यका अन्त । मालूम नहीं होता। इनमें सर्व अतिम राजा वृहद्रथ नामक थे। सन् १८४ ई० पू०में यह अपने सेनापति पुष्पमित्रके हाथसे मारा गया था। और इनके साथ ही मौर्य वंशकी समाप्ति होगई ! अशोकके बाद ही मौर्य साम्राज्यका पतन होना प्रारम्भ होगया था, यह हम पहिले लिख चुके हैं । अशोकके उत्तराधिकारियोंमें कोई इस योग्य नहीं था जो समूचे साम्राज्यकी वाग्डोर अपने सुदृढ़ हाथोंमें ग्रहण करता । मालूम होता है कि पूर्वीय भागमें अशोकका पोता दशरथ राज्याधिकारी रहा था,
और पश्चिमकी ओर संप्रति सुयोग्य रीतिसे शासन करता रहा था। हिन्दू पुराणोंसे विदित है कि इसी समय शुङ्ग-वंशने राजविद्रोह किया था। मौर्य साम्राज्यके पतनका यह भी एक कारण था। कट्टर ब्राह्मण अवश्य ही संप्रतिके जैनधर्म प्रचारके कारण उनसे असंतुष्ट थे। इनके अतिरिक्त और भी कारण थे; निनके परिणामरूप मौर्य 1 इंऐ० मा० २१ पृ. ३३५। २-जैसासं० भा०१ वीर वंश• पृ०६॥
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