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२८८ ] संक्षिप्त जैन इतिहास । ताम्रपर्णी अर्थात् लङ्काद्वीप; और (६) सीरिया, मिश्र, माइसीनी, मेसिडोनिया और एपिरस नामक पांच ग्रीक राना निनपा क्रमसे अंतियोक ( Antiochos II, 261-216 B. C.), तामय (Ptolong Philadelphoz; 285-247 BC.;75(Iluga. 285-254 B. अतिफिनि (Antigonos; Gonatas 277239 B.C.) और मलिक सुन्दर (Alextuder 27:25 B. C.) नामके राजा राज्य करते थे। __ ईसवी सन्के पूर्व २५ में ये पांचों गना एक माथ नौवित थे । मतः अनुमान किया जाता है कि इसी समय अशो धोपदेशक धर्मका प्रचार करने के लिये विदेशों में भेजे गए थे। इस प्रकार यह प्रकट है कि अशोका धर्मप्रचार का भारतमें ही सीमित नहीं रहा था। प्रत्युन ए शया, माछा और चोहरमें भी उमने धर्मोपदेशक भेजे थे। हा मुख्य कार्यश्री पेक्षा समारभरके माधुनिक इतिहापौ कोई भी स्म्राट अशोककी समानता नहीं कर सका । वह एक अद्वितीय राना थे। अशोकने निन उपरोक्त देशोंमें धर्मप्रचार किया था, उनमें किसी न किसी रूपमें मैंन चिन्होंके अस्तित्वका पता चलता है।
१-लका जनधर्म का प्रचार एक अत्यन्त प्राचीनकालने था, पर जैन शात्रोसे प्रगट है । लंकाका सक्षमवंश, जिसमें प्रसिद्ध राजा गवग हुआ, जैनधर्मानुयायी था। (भपा० पृ० १६०-१६८) अशोरले पहिले सम्राट चन्द्रगुप्तके समयमें लंका पादुमय नामक राजा राज्य करता था (३६७-३०७ ई० पू०) । इसने निप्रन्यो (नौ) के लिये अपनी राजधानी अनुरुद्रपुरमें मंदिर व विहार बनाये थे । (ईसे० पृ० ३७)। २-अध० पृ०.५४-५५ । ३-भपा० पृ. १८६-२०२।।
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