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मौर्य साम्राज्य।
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(७) कल्प शब्दका व्यवहार पंचम शिलालेखमें हुमा है। जनोंकी कालगणनामें कल्पकाल माना गया है।'
(८) एक देश शब्द सप्तम शिलालेखमें मिलता है । जैन-- धर्ममें भी आंशिक धर्मको एक देश धर्म बताया गया है।'
(९) सम्बोधिका प्रयोग अष्टम शिलालेखमें है। जैनशास्त्रमें वोघि सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिको कहा गया है।
(१०) वचन गुप्तका उपदेश बारहवें शिलालेखमें है कि अपने धर्मसे भिन्न धर्मोके प्रति वचन गुप्तिका मन्यात करो, निससे परस्पर ऐक्यकी बढ़वारी हो । गुप्ति जैनधर्ममें तीन मानी गई हैं(१) मनगुप्ति (२) वचनगुप्ति और (३) कायगुप्ति । अन्यत्र यह मेद नहीं मिलता है।
(११) समवायका व्यवहार भी बारहवें शिलालेखमें है। जैन द्वादशांगमें एक अंग ग्रन्थका नाम 'समवायांग' है।
(१२) वेदनीय शब्द त्रयोदश शिलालेखमें अशोहने दुःख प्रकाशके लिये प्रयुक्त किया है। जैनधर्ममें भी वेदनीय शब्द दुःख मुखश द्योत माना गया है और आठ कर्मामें एक मर्मका नाम है।
• जो समो सबभृदेसु तलेसु थावांसुध । जस्स रागो य दोमो य वि िण जति दु ॥५२६॥ मुला । १-" पपलियमाणकाओ पयलियमिच्छत्तमोहसमचित्तो । पावइ तिहुश्णमा वोही जिणसासणे जीवो ७॥"-अट० पृ०२१५ २-पुरुषार्थसिद्धयुपाय ४१७ । 3-'सेय भवभयमहणी बोधी ।'-मूला० पृ. २७७
४-मूलाचार पृ० १३५ व तत्वार्थ पृ० १७५-१७६ । ५-तत्वार्थ: विगमसूत्र, पृ० ३० । ६ तत्वार्थधिगमसूत्र, पृ० १६० .
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