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मौर्य साम्राज्य | [२४५ चंद्रगुप्त के बाद मौर्यवंशका दूसरा राना विदुपार था । विद्वान
चाहते हैं कि वह भी अपने पिता समान जैनधर्माबार नुयायी और पराक्रमी राना था। जैन शास्त्रोंमें इसका नाम सिंहसेन लिखा है । सन् ३०० ई० पू० के लगभग वह मगध राज्यसिंहासनपर बैठा था । इसका विशेष इतिहास कुछ ज्ञात नहीं है। किन्तु इस राज्यका संपर्क विदेशी राजाओंसे बढ़ा था; यह प्रगट है, मेगास्थनीनके चले जानेके बाद इसके राजदरवारमें सिल्युकसके पुत्र एण्टिओकस नया दुत समूह मेगा था; फिर मिसनरेश टोल्मी फो डोलफसने भी डेओनीसे उसकी अध्यक्षतामें एक दुत समूह भेजा था।२ बिन्दुसारके राज्यकालमें विदेशोंसे व्यापारके अनेक मार्ग खुले थे और आपसमें दुतोंकना शब्द मदल बदल होता था । यूनानी विद्वानोंने इसका नाम कुछ ऐसे शब्दोंमें लिखा है जो अमित्रघात अथवा अमित्रखादका अपभ्रंश प्रतीत होता है। बिन्दुमारकी एक रानी ब्राह्मण जातिकी सुभद्रांगी नामकी थी।
___अशोकका जन्म इसीकी कोखसे हुआ अशोकका राजतिलक । था। कहते हैं कि अशोकका एक बड़ा भाई और था; किन्तु सब भाइयोंमें योग्यतम होनेके कारण उसके पिताने उसे ही युवराज पद प्रदान किया था। बिन्दुसारके उपरान्त वही मगधका राना हुआ था। उसके हाथों में राज्यभार ।
१-हिवि० मा० ७ पृ० १५७ । २-लामाइ• पृ० १६९ । ३-जराएम्रो० सन् १९२८ भा० १ पृ. १३२-१३५ । ४-माप्रारा० भा० २ पृ०-९६।
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