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मौर्य साम्राज्य ।
[२२५ जिससमय चन्द्रगुप्त भारतमें उक्त प्रकार एक शक्तिशाली सिल्यूकस नाइके- केन्द्रिक शासन स्थापित करने में संलग्न था,
टरसे युद्ध। उसी समय पश्चिमीय मध्य ऐशियामें सिकंदर महान्का सिल्यूकस नाइकेटर नामक एक सेनापति अपना अधिकार जमानेका प्रयास कर रहा था। उसने बड़ी सफलतासे सिरिया, एशिया माइनर और पूर्वीय प्रदेशोंको हस्तगत कर लिया था। उसने भारतको भी फिरसे जीतना चाहा और ३०५ ई० पू० में सिन्धु नदी पार कर आया। चन्द्रगुप्तकी अजेय सेनाने उसका सामना किया । पहिली ही मुठभेड़में सिल्यूकसकी सेना पिछड़ गई और उसे दवार सँघि कर लेनी पड़ी। इस संधिक अनुमार सिंधु नदीके पश्चिमी मृगों-विलोचिस्तान और अफगानिस्तानको चंद्रगुप्तने अपने राज्यमें मिला लिया। सिल्यूकस ५०० हाथी लेकर संतुष्ट होगया। उसने अपनी बेटी भी चन्द्रगुप्तको व्याह दी।
इस विनयसे चंद्रगुप्त का गौरव और मान विदेशोंमें बढ़ गया। सिल्यूकमका दुत उसके राजदरबार में आकर रहने लगा और उसके सम्पर्कसे भारतका महत्वशाली परिचय और तान्त्रिक ज्ञान त्रिदेशियोंको हुआ 1 पैहो (Pyrrho ) नामक एक यूनानी तत्ववेत्ता जैन श्रमणोंसे शिक्षा ग्रहण करनेके लिये यहां चला आया और व्यापारको भी खूब उन्नति हुई । चन्द्रगुप्तके इस साम्राज्य विस्तारके अपूर्व कार्य और फिर उसे व्यवस्थित भावसे एक सूत्र में बांध रखनेसे उसकी अदभुत तेनम्मिता, तत्पाता और बुद्धिमत्ताका परिचय मिलता है। साधारण भवस्यासे उठकर वह एक महान सम्राट
१-भाइ० पृ० ६२-६३१२-हिग्ली० पृ० ४२ व लाम० पृ० ३४ ।
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