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श्रुतकेवली भद्रबाहु और अन्य आचार्य। [२१७ उसने पिताके जीवनका अन्त करना ही उचित समझा | स्थूलभद्रको इस घटनासे संवेगका अनुभव हुआ और वह तीस वर्षकी अवस्थामें मुनि होगये । चौवीस वर्षतक उन्होंने श्री संभूतिविनयकी सेवा की और उनसे चौदह पूर्वोको सुनकर, उनने दशपूर्वो का अर्थ ग्रहण किया। संभृतिविजयके उपरांत वे युगप्रधान पदके अघिकारी हुये और इस पदपर ४५ वर्ष रहे। वीरनिर्वाण सं० २१५ में स्वर्गलाम हुआ कहा जाता है। इन्हीक समयमें अर्थात वीर नि० सं० २१४में तीसरा निहन्व (संघभेद) उपस्थित हुमा कहा जाता है। यह अपाढ़ नामक व्यक्ति द्वारा स्वेतिका नगरीमें घटित हुआ था; किंतु वह मौर्यबलभद्र द्वारा राजगृहमें सन्मार्ग पर ले आया गया लिखा है।
१-जैसास०, भा० १ वीर पृ० ५-६; किन्तु श्वेतांबरोंकी दूसरी मान्यताके अनुसार स्थूलभद्रने दश पूर्वोका अर्थ भद्रबाहुस्वामीसे प्रहण किया था और वह उनके वाद ही पट्टपर आये होंगे। श्वेतांपरोंका यह भी मत प्रगट होता है कि स्यूलभद्र अंतिम श्रतकेंवली थे; किंतु उन्हींकी मान्यतासे भद्रवाहुका अंतिम श्रुतकेवली होना प्रगट है। (उसू० भूमिका --१०५४).० हेमचन्द्राचार्यने राज्योंकी काल गणनामें ६० वर्षकी भूल की
है; इसी कारण वी. नि. २१५ में स्थूलभद्रका अंतिम समय प्रगट किया गया है । २-ईऐ० भा० २१ पृ० ३३५.. ... ... .