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________________ ॥ ॐश्रीमहावीराय नमः ॥ संक्षिप्त जैन इतिहास दूसरा भाग। ई० सन् पूर्व ६०० से ई० सन १३०४ तक कायत नैनधर्म सनातन है | उसका प्रारूत रूप सरल सत्य है । जैन धर्मका उमका नामकरणही यह प्रगट करता है। जिन' प्राकृत रूप। शब्दसे उसका निकास है, जिसका अर्थ होता है 'जीतनेदाला' अथवा 'विनयी'। दूसरे शब्दों में विनयी वीरोंका धर्म ही जन धर्म है और यह व्याख्या प्रारूत सुसंगत है। प्रकृति, यह वात नैसर्गिक रीतिये दृष्टि पड़ रही है कि प्रत्येक प्राणी विनयाकांक्षा रखता है । वह जो वस्तु उसके सम्मुख आती है, उसपर अधिकार नमाना चाहता है और अपनी विजयपर आनन्द, नृत्य करनेको उत्सुक है। अबोध बालक भयानकसे भयानक वस्तुको अपने काबू में लाना चाहता है। निरीह वनस्पतिको ले लीजिये। एक घास अपने पासवाली घासको नष्ट करनेपर तुली हुई मिलती है । इस वनस्पतिमें भी अवश्य जीव है; परन्तु वह उस उत्कृष्ट दशामें नहीं है, जिसमें मनुष्य है। किंतु इतना होते हुये भी वह प्रतिके
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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