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________________ २०४] संक्षिप्त जैन इतिहास । वर्ष+नन्दवंश १५५) बाद मौर्यवंशका मभ्युदय हुआ था। श्वेतावर पट्टावलियोंसे सम्राट चन्द्रगुप्तका वीर निर्वाणसे २१९ वर्ष बाद ई० पू० ३२६ या ३२५ के नवम्बर मातमें सिंहासनारूढ़ होना प्रगट है। इस प्रकार चन्द्रगुप्तका राज्यारोहण काल जो ३२६ ई० पू० अन्यथा माना जाता है, वह जैन शास्त्रोंके अनुसार भी ठीक बैठता है । अतएव थी भद्रबाहु स्वामीका अस्तित्व ई० पू० ३८३ था ३६९ के बाद मानना समुचित प्रतीत होता है । जैन . शास्त्रोंसे प्रकट है कि भद्र बाहुस्वामीके ही जीवनकालमें विशाखाचार्य नामक प्रथम दशपूर्वीका भी अस्तित्व रहा था। इस श्लोकमें दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही संप्रदायके ग्रंथोंसे भद्रबाहु और चंद्रगुप्त प्रायः समसामयिक सिद्ध होते हैं। पहिलेके चार श्रुतकेवलियोंके विषयमें दिगम्बर जैन शास्त्रों में कुछ भी विशेष वर्णन नहीं मिलता है। हां, भद्राहुका चरित्र। भद्रबाहके विषयमें उनमें कई कथायें मिलती हैं। श्री हरिपेणके 'वृहत्कथाकोष (सन् ९३१ ) में लिखा -तिप० गा० ९५-९६ । २-ईऐ० भा० ११ पृ० २५१ । ३-दिगम्बर जैनप्रन्थोसे प्रगट है कि भद्रबाहुस्वामी चन्द्रगुप्त सहित कटिपर्व नामक पर्वतपर रह गये थे और विशाखाचार्यके आधिपत्यमें जैनसंघ चोलदेशको चला गया था। उधर श्वेताम्बरोंकी भी मान्यता है कि भद्रबाहु अपने अन्तिम जीवनमें नेपालमें जाकर एकान्तवास करने लगे थे और स्थूलभद्र पट्टाधीश थे । (परि० पृ० ८७-९०) अतः निस्संदेह भद्रवाहुजीके जीवनकाल में ही उनके उत्तराधिकारी होना और उनका ई० पू० ३८३ के वादतफ जीवित रहना उचित जंचता है। २९ वर्ष तक वे पट्टपर रहे प्रतीत होते है और फिर मुनिशासक या उपदेशक -रूपमें शेष जीवन व्यतीत किया विदित होता है। ४-जेशिसं०, पृ०६६ !
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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