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१९२] संक्षिप्त जैन इतिहास ।
(२) 'श्रमण नग्न रहते, कठिन परीपह सहन करते और किसीका निमंत्रण स्वीकार नहीं करते हैं। उनकी मान्यता जनसाधारणमें खूब है।" जैन मुनि कठिन परीपह सहन करने और निमंत्रण स्वीकार करने के लिये प्रख्यात हैं। ___(३) 'इन्डियाके साधु नग्न रहते और कोह कॉफका (Caucasus) बर्फ तथा सर्दीका वेग विना संलेश परिणामोंके सहन करते हैं और जब वे अपने शरीरको अग्निके सुपुर्द कर देते हैं और वह जलने लगता है, तो उनके मुखसे एक आह भी नहीं निकलती है। सर्दी, गर्मी, दंश आदि बाईस परीपहोंको जैन मुनि समताभावसे सहन करते हैं उनको शरीरसे ममत्व नहीं होता। अंतिम समयमें वे सल्लेखना व्रत करते हैं और प्राणान्त होजानेपर भग्निचिता उनकी देह भस्म होजाती है। कल्याण (Kalanos) नामक एक जैन मुनिके सल्लेखना व्रतका विशद वर्णन, यूनानियोंने किया है निम्नमें उसको प्रकट करते हुये इस विषयका स्पष्टीकरण होजायगा | आन भी जैन साधु इस व्रतका अभ्यास करते हुये मिलेंगे। इससे भाव आत्महत्याना नहीं है।
(४) 'उन (भारतीयों) के तत्ववेत्ता, जिनको वे 'निन्मोसोफिस्ट कहते हैं, प्रातः कालसे सूर्यास्त तक सूर्यकी ओर टकटकी लगा कर खडे रहते हैं । खूब जलती हुई रेतपर वह दिनभर सभी इस पैरसे और कभी दूसरेसे स्थित रहते हैं। यहांपर जैन मुनियोंको आतापन योग नामक तपस्याका साधन करते हुये बताया गया है।
(५) साधारण मनुष्यों को संयमी और संतोषमय जीवन वितानेकी१-ऐइ० पृ० ६३ । २-ऐइ. १०६८ फुट०-१ । ३-ऐइ पृ०६८ फु०२।