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________________ १९०] संक्षिप्त जैन इतिहास। बताया है। नदियोंसे भी सोना निकलता था। इसीकारण कहा जाता है कि भारतमें कभी अकाल नहीं पड़ा और न किमी विदेशी रानाने भारतको विनय कर पाया । उनमें झूट बोलने और चोरी करने का प्रायः अभाव था। वे गुणोंका आदर करते थे। वृद्ध होनेसे ही कोई भादरका पात्र नहीं होता। उनमें बहु विवाहकी प्रथा प्रचलित थी। कहीं कन्यापक्षको एक जोड़ी बैल देनेसे वरका विवाह होता था और कहीं वर-कन्या स्वयं अपना विवाह करा लेते थे। स्वयंवरकी भी प्रथा थी। विवाहका उद्देश्य झामतृप्ति और संतान वृद्धिमें था। कोई२ एक योग्य साथी पाने के लिये ही विवाह करते थे। वे छोटीसी तिपाईपर सोनेकी थाली में रखकर भोजन करते थे । उनके भोजनमें चांवल मुख्य होते थे। यूनानियोंने भारतवर्षके तत्ववेत्ताओंका वर्णन किया है, वह बड़े मार्केका है। उन्होंने भारतकी सात भारतीय तत्ववेत्ता । जातियों से पहली जाति इन्हीं तत्ववेत्ता. ओंकी बतलाई है। इनमें ब्राह्मण और श्रमण यह दो भेद प्रगट किये हैं। ब्राह्मण लोग कुल परम्परासे चली हुई एक जाति विशेष थी। अर्थात् जन्मसे ही वह ब्राह्मण मानते थे। किंतु श्रमण सम्प्रदायमें यह बात नहीं थी। हरकोई विना किसी.मातिपांतके भेदसे श्रमण होसक्ता था। ब्राह्मणों का मुख्य कार्य दान, दक्षिणा लेना और यज्ञ कराना था। वे साहित्य रचना और वर्षफल भी प्रगट करते थे । वर्षारम्भमें वे अपनीर रचनायें लेकर राजदर १-मेऐइ० पृ. ३१-३३ । २-ऐइमे० पृ० ५०-५१ । १३-ऐइ. १० ३८१.४-मेएइ० .पृ० .२२२ । ५-मेऐइ०, ०५१ मेऐव, पृ. ७४ । ७-मेऐइ०, पृ. ९८ । ८-ऐइ. पृ० १६९ व १०१। -
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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