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________________ सिकन्दर-आक्रमण व तत्कालीन जैन साधु । [ १८७ राज्य करता था, उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की थी। पुरुने बड़ी वीरतासे लड़ाई में सिकन्दरका सामना किया था; किंतु उसके हाथियों ने बड़ा धोखा दिया और हठात् उसने सिकन्दरका माधिपत्य स्वीकार कर लिया था। इस विनयके बाद सिकन्दर अगाड़ी पूर्व दिशाकी ओर बढ़ा था और व्याप्त नदी किनारपर पहुंचा था। यहां उसकी सेनाने जवाब देदिया-वह थक गई थी। उसने अगाडी बढ़ने से इन्कार कर दिया था। वरवश सिकन्दरको वापप्त अपने देश लौट जाना पड़ा था । झेलम नदीके पास उसके सैनिकोंने दो हमार नावोंका वेड़ा तैयार कर लिया और उसपर सवार होकर अक्टूबर सन् ३२६ ई० पू० में वह झेलम नदीके मार्गसे वापस हुआ था। मार्गमें उसे कठिन कठिनाइयां झेलनी पड़ीं और दस महीनेकी यात्राके बाद वह फारस पहुंचा था। जून सन् ३२३ ई० पू० में वेबीलनमें ३२ वर्षकी अवस्था में सिकन्दरका देहान्त होगया था। उसका विचार सिन्ध और पंजाबको अपने साम्राज्यमें मिला लेनेका था; किन्तु अपनी असामायिक मृत्युके कारण वह ऐसा नहीं कर सका था। उसकी मृत्युके बाद उसका साम्राज्य छिन्नमिन्न होगया और भारतके उत्तर-पश्चिमीय सीमावर्ती प्रदेशपर जो उसका अधिकार कुछ जमो था; उसे चन्द्रगुप्त मौर्यने नष्ट कर दिया था। ___ यूनानियोंके इस आक्रमणका भारतपर कुछ भी असर नहीं यूनानियोंकः आंक्रम- पड़ा था। भारतकी सभ्यता और उसके "णको प्रमावः। आचार-विचार मर्छन्न रहें थे। भारतीयोंने १-माह० पृ० ५५-५८।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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