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संक्षिप्त जैन इतिहास |
जम्बू कुमारकी मनोवृत्ति वैराग्यमई थी । युवावस्था होनेपर भी वह सांसारिक प्रलोभनोंसे विरक्त थे । एक दिन
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वैराग्य | विपुलाचल पर्वत पर श्री सुधर्मास्वामी संघसहित आये और राजा अजातशत्रु रनवास और पुरमन सहित वन्दना करनेके किये गये थे । जम्बूकुमार भी गये थे और वह जिनदीक्षा ग्रहण करना चाहते थे; किन्तु सम्बन्धियोंके विशेष आग्रह से घर वापिस लौट आये ।' श्वेताम्बर आम्नायकी मान्यता है कि इससमय उनकी अवस्था सोलहवर्षकी थी और उनने श्रावक के व्रत धारण किये थे ।
घरपर आते ही जम्बूकुमारके माता- पिताको उनका विवाह
कर देनेकी फिक्र हुई थी । उनने देखा कि यदि उनका विवाह । इकलौता बेटा भोगोपभोगको सामिग्री और सुन्दर रमणियोंको पाकर सांसारिकता में संलन न हुआ तो अवश्य ही उन्हें उससे हाथ धो लेने होंगे । यही सोचकर उनने आठ सेठपुत्रियोंसे . उनका विवाह कर दिया था । माता-पिता के याग्रह से उनने विवाह तो कर लिया; किन्तु आपने अपनी पत्नियोंके प्रति स्नेहकी एक दृष्टि भी न डाली ।
वह विवाह के दूसरे दिन ही तपोभूमि की ओर जानेके लिये. उद्यत होगये ! मांने बहुत समझाया और प्रेम दर्शाया । पत्नियों ने विषयभोगोंकी सारता और अपना अधिकार उनपर सुझाया; किन्तु कोई भी जंबू कुमार को दीक्षा ग्रहण करनेकी दृढ़ प्रतिज्ञासे शिथिल : न कर सका ! उसीसमय एक विद्युत नामक चोर, जो अर्हद्दास के
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यहां चोरी करने आया था, जम्बूकुमारके इस वैराग्य और निलमको
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१-उपु० पृ० ७०३ । २-जैसा सं० सं० १ ० ३ - वीर० पृ०:२