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१६६] संक्षिप्त जैन इतिहास ।
चौथा मत श्रीयुत पं० नाथूरामजी प्रेमीका है और उसके विक्रमासे ५५० पूर्व अनुसार विक्रमाब्दसे १५० वर्ष पहले वीर भी निर्वाणकाल प्रभू मोक्ष गये प्रगट होते हैं। इस मतका
नहीं होसका। आधार श्री देवसेनाचार्य और श्री अमितगति आचार्यका उल्लेख है; जिनमें समयको निर्दिष्ट करते हुए 'विक्रमनृपकी मृत्युसे' ऐसा उल्लेख किया गया है । होसक्ता है कि इन आचार्योंको विक्रमसंवतको उनकी मृत्युसे चला मानने में कोई गलती हुई हो; क्योंकि विक्रमकी मृत्युके बाद प्रजा द्वारा इस संवतका चलाया जाना कुछ जीको नहीं लगता। 'त्रिलोकप्रज्ञप्ति' मादि प्राचीन ग्रन्थोंमें इस मतका उल्लेख नहीं मिलता है। यदि इस मतको मान्यता दीजाय तो सम्राट अजातशत्रुके राज्यकालमें भगवान महावीरका निर्वाण हुआ प्रगट नहीं होता और यह वाधा पूर्वोक्त तीन मतोंके सम्बन्धमें भी है। दिगम्बर और श्वेताम्बर जैन ग्रन्थों एवं बौद्धोंके शास्त्रोंसे यह बिल्कुल स्पष्ट ही है कि महावीरजीके निर्वाण समय अजातशत्रुका राज्य था। उसके राज्यके अंतिम भागमें यह घटना घटित हुई थी। अजातशत्रुका राज्यकाल सन् ५९२ से ५१८ ई० पू० मथवा सन् १९४ से ६२७ ई० पू० प्रगट है। विक्रमाव्दसे ५६० वर्ष पूर्व भगवानका मोक्षलाभ माननेसे वह सम्राट् श्रेणिकके राज्यकालमें हुआघटित होता है और यह प्रत्यक्ष बाधित है। अतः इस मतको स्वीकार कर लेना भी कठिन है।
... १-दर्शनसार पृ० ३६-३७ १२-जविओसो०, भा०१पृ०.७९-११५
व उपु० । जबिओसी०, भा० १ पृ. ९९-११५ ६ महिइं०, पृ० ३४.३८ ।